asd चौधरी चरण सिंह: 1937 में पहली बार विधायक बने, किसानों के मसीहा भी कहलाए, जातिवाद के थे विरोधी

चौधरी चरण सिंह: 1937 में पहली बार विधायक बने, किसानों के मसीहा भी कहलाए, जातिवाद के थे विरोधी

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नई दिल्ली, 09 फरवरी। भारत सरकार ने तीन और लोगों को भारत रत्न देने का एलान कर दिया है। इनमें पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह का नाम भी शामिल है। चरण सिंह की पहचान किसान नेता के तौर पर रही है।
चरण सिंह का जन्म 1902 में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के नूरपुर में एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने 1923 में विज्ञान से स्नातक की एवं 1925 में आगरा विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। कानून में प्रशिक्षित चरण ने गाजियाबाद से अपने पेशे की शुरुआत की। वे 1929 में मेरठ आ गये और बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए।

चरण सिंह सबसे पहले 1937 में छपरौली से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए एवं 1946, 1952, 1962 एवं 1967 में विधानसभा में अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। वे 1946 में पंडित गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में संसदीय सचिव बने और राजस्व, चिकित्सा एवं लोक स्वास्थ्य, न्याय, सूचना इत्यादि विभिन्न विभागों में कार्य किया। जून 1951 में उन्हें राज्य के कैबिनेट मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया एवं न्याय तथा सूचना विभागों का प्रभार दिया गया। बाद में 1952 में वे डॉ. सम्पूर्णानन्द के मंत्रिमंडल में राजस्व एवं कृषि मंत्री बने। अप्रैल 1959 में जब उन्होंने पद से इस्तीफा दिया, उस समय उन्होंने राजस्व एवं परिवहन विभाग का प्रभार संभाला हुआ था।

सी.बी. गुप्ता के मंत्रालय में वे गृह एवं कृषि मंत्री (1960) थे। सुचेता कृपलानी के मंत्रालय में वे कृषि एवं वन मंत्री (1962-63) रहे। उन्होंने 1965 में कृषि विभाग छोड़ दिया एवं 1966 में स्थानीय स्वशासन विभाग का प्रभार संभाल लिया।
भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार के सख्त विरोधी
कांग्रेस विभाजन के बाद फरवरी 1970 में दूसरी बार वे कांग्रेस पार्टी के समर्थन से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। हालांकि राज्य में 2 अक्टूबर 1970 को राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था।
चरण सिंह ने विभिन्न पदों पर रहते हुए उत्तर प्रदेश की सेवा की एवं उनकी ख्याति एक ऐसे कड़क नेता के रूप में हो गई थी जो प्रशासन में अक्षमता, भाई-भतीजावाद एवं भ्रष्टाचार को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करते थे। प्रतिभाशाली सांसद एवं व्यवहारवादी चरण सिंह अपने वाक्पटुता और दृढ़ विश्वास के लिए जाने जाते थे।

भूमि सुधार के लिए किया काम
उत्तर प्रदेश में भूमि सुधार का पूरा श्रेय उन्हें जाता है। ग्रामीण देनदारों को राहत प्रदान करने वाला विभागीय ऋणमुक्ति विधेयक, 1939 को तैयार करने एवं इसे अंतिम रूप देने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। उनके द्वारा की गई पहल का ही परिणाम था कि उत्तर प्रदेश में मंत्रियों के वेतन और उन्हें मिलने वाले अन्य लाभों को काफी कम कर दिया गया था। मुख्यमंत्री के रूप में जोत अधिनियम, 1960 को लाने में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। यह अधिनियम जमीन रखने की अधिकतम सीमा को कम करने के उद्देश्य से लाया गया था ताकि राज्य भर में इसे एक समान बनाया जा सके।
देश में कुछ ही राजनेता ऐसे हुए हैं जिन्होंने लोगों के बीच रहकर सरलता से कार्य करते हुए इतनी लोकप्रियता हासिल की हो। चरण सिंह को लाखों किसानों के बीच रहकर प्राप्त आत्मविश्वास से काफी बल मिला।
चौधरी चरण सिंह ने अत्यंत साधारण जीवन व्यतीत किया और अपने खाली समय में वे पढ़ने और लिखने का काम करते थे। उन्होंने कई किताबें एवं रूचार-पुस्तिकाएं लिखी जिसमें ‘जमींदारी उन्मूलन’, ‘भारत की गरीबी और उसका समाधान’, ‘किसानों की भूसंपत्ति या किसानों के लिए भूमि, ‘प्रिवेंशन ऑ डिवीन ऑ होल्डिंग्स बिलो ए सर्टेन मिनिमम’, ‘को-ऑपरेटिव फार्मिंग एक्स-रेड’ आदि प्रमुख हैं।

लाल किले पर झंडा फहराने धोती-कुर्ते में पहुंच गए चौधरी साहब
चौधरी चरण सिंह के नाम एक अनोखा रिकॉर्ड है। वह यूपी के इकलौते ऐसे नेता थे, जिन्होंने कभी भी कोई चुनाव नहीं हारा। बागपत जिले का छपरौली गांव, जहां से उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ा। वहां आज भी लोग उनके किस्से-कहानियां सुनाते हैं। छपरौली के रहने वाले रामपाल कहते हैं,चौधरी साहब का एक बेहद चर्चित किस्सा है। प्रधानमंत्री बनने के 19 दिन बाद चौधरी साहब को लालकिले पर झंडा फहराना था। वह पहली दफा झंडारोहण करने गए तो उनसे पीए ने पूछा कि सर क्या आप धोती-कुर्ता और टोपी में ही झंडा फहराने चलेंगे? इस पर चौधरी साहब ने कहा- बिल्कुल। आज पूरा देश देखेगा कि किसान-मजदूर का बेटा लाल किले पर झंडा फहराएगा।

चौधरी चरण सिंह से जुड़ी कुछ खास बातें
– मेरठ चौधरी चरण सिंह की कर्मभूमि रही है। यहां इनके नाम से एक (चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय) विश्वविद्यालय भी है। सीसीएसयू की स्थापना सन 1965 में मेरठ विश्वविद्यालय नाम से हुई थी। बाद में इसका नाम बदलकर चौधरी चरण सिंह के नाम पर रख दिया गया।
-पूर्व प्रधानमंत्री ने मेरठ कालेज से एलएलबी की पढ़ाई करने के बाद में यहीं से वकालत भी की थी। कचहरी रोड स्थित छोटे से मकान में रह कर उन्होंने वकालत की शुरुआत की थी, तीन-चार साल वह यहां रहे।
-चौधरी चरण सिंह एक लेखक भी थे। उन्होंने इकोनामिक नाइट मेयर आफ इंडिया समेत कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं। चौधरी साहब महाभारत से जुड़ी कथाएं लोक शैली में गाते थे और सुनने के भी शौकीन थे।
-चौधरी चरण सिंह ने हमेशा किसानों के हित के लिए संघर्ष किया। उन्होंने जुलाई 1979 से जनवरी 1980 तक देश के प्रधानमंत्री के तौर पर कार्यकाल के दौरान किसानों के उत्थान और विकास के लिए अनेक अहम नीतियां बनाईं। इससे किसानों के हालातों में काफी सुधार भी दिखा।
-‘धरा पुत्र चौधरी चरण सिंह और उनकी विरासत’ पुस्तक के अनुसार, चौधरी साहब ने सितंबर 1970 में मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देने की घोषणा की तब वह कानपुर में दौरे पर थे। वहीं से सरकारी गाड़ी वापस की तथा प्राइवेट वाहन से लखनऊ पहुंचे।
-मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देने के बाद उन्होंने अपनी गाय को तबके सूचना निदेशक पंडित बलभद्र प्रसाद मिश्र को दिया। तब कहा था कि त्यागपत्र देने से बंगला, नौकर-चाकर गए। गाय की देखभाल कौन करेगा? गाय हमारे यहां बेची नहीं जाती इसलिए आप ले जाइए।
-चौधरी साहब ने 1954 में कृषि उपज बढ़ोतरी को मिट्टी की जांच व्यवस्था शुरू कराई तथा अंग्रेजी जमाने का वह कानून खत्म कराया जिसमें नहर पटरी पर ग्रामीणों के चलने पर रोक थी।
– रालोद नेता ओमबीर ढाका बताते हैं कि चौधरी साहब जातिवाद के कट्टर विरोधी थे। इसे खत्म करने के लिए उन्होंने अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा दिया।

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