asd पक्षाघात रोगियों को ठीक करेगा आइआइटी का रोबोटिक हैंड एक्सोस्केलेटन

पक्षाघात रोगियों को ठीक करेगा आइआइटी का रोबोटिक हैंड एक्सोस्केलेटन

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कानपुर 13 जनवरी। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) कानपुर ने स्ट्रोक के बाद की चिकित्सा को फिर से परिभाषित (defined) करने के लिए अपनी तरह का पहला ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेस (BCI) बेस्ड रोबोटिक हैंड एक्सोस्केलेटन विकसित किया है। इससे स्ट्रोक रिहैबिलिटेशन में मदद करने, मरीज की रिकवरी में तेजी लाने और परिणामों को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी। यह इनोवेशन आईआईटी के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर आशीष दत्ता के 15 वर्षों के कठोर शोध का परिणाम है, जिसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST), यूके इंडिया एजुकेशन एंड रिसर्च इनिशिएटिव (UKIERI) और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) का समर्थन मिला है।

बता दें कि BCI बेस्ड रोबोटिक हैंड एक्सोस्केलेटन एक अद्वितीय क्लोज्ड-लूप नियंत्रण प्रणाली का उपयोग करता है जो उपचार के दौरान रोगी के मस्तिष्क को सक्रिय रूप से जोड़ता है। यह तीन आवश्यक घटकों को एकीकृत करता है: पहला, ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस जो रोगी के हिलने-डुलने के प्रयास का आकलन करने के लिए मस्तिष्क के मोटर कॉर्टेक्स से ईईजी संकेतों को कैप्चर करता है, दूसरा, रोबोटिक हैंड एक्सोस्केलेटन जो थेरप्यूटिक हैन्ड की तरह काम करता है, और तीसरा घटक सॉफ़्टवेयर है जो, वास्तविक समय में आवश्यकता के अनुसार बल प्रतिक्रिया के लिए एक्सोस्केलेटन के साथ मस्तिष्क के संकेतों को सिंक्रनाइज़ करता है। यह सिंक्रनाइज़ दृष्टिकोण मस्तिष्क की निरंतर भागीदारी सुनिश्चित करता है, जिससे तेज़ और अधिक प्रभावी रिकवरी को बढ़ावा मिलता है।

प्रो. आशीष दत्ता ने दी जानकारी
इस नवाचार के बारे में बोलते हुए, प्रो. आशीष दत्ता ने कहा, “स्ट्रोक से रिकवरी एक लंबी और अक्सर अनिश्चित प्रक्रिया है। हमारा उपकरण फिज़िकल थेरपी, मस्तिष्क की सक्रियता और विसुअल फीडबक तीनों को एकीकृत कार्रत है, जिससे एक बंद लूप नियंत्रण प्रणाली बनती है जो मस्तिष्क की प्लास्टिसिटी को सक्रिय करती है, जो उत्तेजनाओं के जवाब में अपनी संरचना और कार्यप्रणाली को बदलने की मस्तिष्क की क्षमता को बढ़ाती है। यह उन रोगियों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जिनकी रिकवरी रुक गई है, क्योंकि यह आगे के सुधार और गतिशीलता को पुनः प्राप्त करने की नई उम्मीद देता है। भारत और यूके दोनों देशों में आशाजनक परिणामों के साथ, हम आशावादी हैं कि यह उपकरण न्यूरोरिहैबिलिटेशन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रभाव डालेगा।”

इस थेरेपी के माध्यम से लोग हुए ठीक
रीजेंसी हॉस्पिटल (भारत) और यूनिवर्सिटी ऑफ अल्स्टर (यूके) के सहयोग से किए गए पायलट क्लिनिकल परीक्षणों ने असाधारण परिणाम दिए हैं, जो ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस (BCI) आधारित रोबोटिक हैंड एक्सोस्केलेटन की परिवर्तनकारी क्षमता को प्रदर्शित करते हैं।जानकारी के अनुसार , आठ मरीज़ – भारत में चार और यूके में चार – जो स्ट्रोक के एक या दो साल बाद अपनी रिकवरी में स्थिर हो गए थे, इस अभिनव थेरेपी के माध्यम से पूरी तरह से ठीक हो गए। यह उपकरण थेरेपी के दौरान मस्तिष्क को सक्रिय रूप से शामिल करके रिहैबिलिटेशन की प्रभावशीलता को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाता है, जिससे पारंपरिक फिजियोथेरेपी की तुलना में तेज़ और अधिक व्यापक रिकवरी होती है।

6 से 12 महीने के भीतर स्ट्रोक से उबरने का समय होता है ठीक
स्ट्रोक से उबरने का सबसे कारगर समय पहले छह से बारह महीनों के भीतर का होता है, लेकिन इस डिवाइस ने उस महत्वपूर्ण समय सीमा से परे भी रिकवरी को सुविधाजनक बनाने की क्षमता प्रदर्शित की है। भारत में अपोलो हॉस्पिटल्स के साथ बड़े पैमाने पर चल रहे क्लिनिकल परीक्षणों के साथ, उम्मीद है कि यह डिवाइस तीन से पांच साल के भीतर व्यावसायिक रूप से उपलब्ध हो जाएगी, जो स्ट्रोक के रोगियों के लिए नई उम्मीद की किरण होगी।

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