नौवे सिख गुरू तेगबहादुर एवं माता गुजरी देवी के पुत्र सिख समाज के दसवंें गुरू गोविंद सिंह जी के धर्म समाज को दिया गया उल्लेखनीय योगदान मानव जाति भूला नहीं सकती। उनकी प्रेरणा से समाज में अनेको बहादुरों ने मानव और धर्म रक्षा के लिए काम किए। आज भी हम सब उन्हें प्रेरणा स्त्रोत मानते हैं। ऐसे महान गुरू गोविंद सिंह जी की जयंती के उपलक्ष्य में सरकारी कार्यालय बंद होने के बावजूद चौधरी चरण सिंह विवि के तहत आने वाले मेरठ कॉलेज में आज दो चरणों में हुई परीक्षा दिन भर चर्चा का विषय बनी रही। लोगों को कहना था कि जब हमेशा इस बात का ध्यान रखा जाता है कि छुटिटयों के दौरान आवश्यक कार्य के आयोजन नहीं होने चाहिए वैसे भी जितना याद है अवकाश के दिनों में सरकार भी ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं रखवाती जिससे किसी की भावनाएं आहत होती हों। उसके बावजूद इस एग्जाम जिसमें हर वर्ग जाति के बच्चों को शामिल होना होता है छुटटी के बाद भी एग्जाम क्यों। मेरा मानना है कि किसी भी सार्वजनिक अवकाश के दिन ऐसा कोई आयोजन ना हो तो ही अच्छा है जिसमें शामिल होना सर्वसमाज के लिए लोगों को मजबूरी होता हो।
एक धार्मिक लेख के अनुसार गुरु गोविंद सिंह सिखों के दसवें गुरु थे। इनका जन्म पटना में हुआ। इनके पिता गुरु तेग बहादुर नौवें सिख गुरु थे और इनकी माता का नाम गुजरी देवी था। दस वर्ष की आयु में ही गुरु गोविंद सिंह सिख धर्म के दसवें गुरु बन गए थे। गुरु गोविंद सिंह एक प्रसिद्ध कवि और आध्यात्मिक नेता भी थे जिनकी वीरता और साहस के उदाहरण आज भी प्रचलित हैं। इनके उपदेश जीवन जीने की प्रेरणा प्रदान करते हैं। इस विशेष पर्व को मनाने की मान्यता पूरे देश में है। 6 जनवरी को गुरु गोविंद सिंह जयंती मनाई जाएगी। गुरु गोबिंद सिंह का संपूर्ण जीवन हमें हर तरह के अत्याचार और दमन के खिलाफ उठ खड़े होने की सच्ची प्रेरणा देता है। गुरु गोबिंद सिंह जी ऐसे ही इतिहास पुरुष थे जिनकी लड़ाई अन्याय, अधर्म, अत्याचार और दमन के खिलाफ ही होती थी। केवल 9 साल की उम्र में दुनिया के सबसे ताकतवर समुदायों में से एक की कमान संभालने वाले गुरु गोबिंद सिंह केवल वीर ही नहीं थे, बल्कि वे वे भाषाओं के जानकार और अच्छे लेखक भी थे। गुरु गोविंद सिंह सिख धर्म के आखिरी मानक गुरु
माने जाते हैं जिन्होंने सिख समुदाय को अत्याचार और अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए मजबूत किया था। गुरु गोविंद सिंह ने बैसाखी के दिन 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की थी जिसकी स्थापना का प्रतीक साहस, निस्वार्थता, और धार्मिकता के प्रति समर्पण की भावना है। गुरु गोविंद सिंह जी ने ही गुरु ग्रंथ साहिब को सिखों का गुरु घोषित किया था। धर्म की रक्षा के लिए गुरु गोबिंद सिंह ने अपने पूरे परिवार का एक-एक करके बलिदान कर दिया था. इसके बाद उन्हें सरबंसदानी (सर्ववंशदानी) भी कहा जाने लगा। इसके अलावा लोग उन्हें कई नामों से सम्मान के साथ पुकारते थे, जैसे कलगीधर, दशमेश और बाजांवाले।
मुझे लगता है कि सरकार किसी की भी हो ऐसे धार्मिक आयोजनों की छुटटी पर अवकाश रहे तो अच्छा है जिससे हर आदमी उसे मना सके और पूजा पाठ भजन कीर्तन कर सके। वैसे भी यह अवकाश कई दशक से जारी है। तो फिर विवि द्वारा उक्त एग्जाम क्यों कराया गया आज के दिन।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
सिख समाज के दसवें गुरू गोविंद सिंह जी की जयंती के अवकाश के बावजूद मेरठ कॉलेज में एग्जाम क्यों
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