देश में बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध कराने और वृहद स्तर पर नौकरी दिए जाने के साथ ही उद्योग धंधे लगाने व्यापार करने के लिए सुविधा नागरिकों को उपलब्ध कराने के दावे खूब हो रहे हैं। इस बारे में आए दिन कोई ना कोई बयान पढ़ने सुनने को मिलता है। लेकिन यह ताज्जुब की बात है कि इस सबके बावजूद पिछले दस साल में लगभग 15 लाख लोग भारतीय नागरिकता छोड़ विदेशों में जा बसे हैं और यह आंकड़ा अरूणाचल प्रदेश या गोवा की आबादी के बराबर ही कह सकते हैं। सवाल यह उठता है कि इतनी सुविधाएं दिए जाने के बावजूद देश की प्रतिभाएं आखिर विदेशी नागरिकता क्यों ले रही हैं। मेरा मानना है कि इस बारे में सरकार और खासकर उच्च पदों पर बैठे जनप्रतिनिधियों व सरकारी विभागों के लोगांे को सोचना होगा। क्योंकि यह जो आंकड़ा बताया जा रहा है वो इस बात का प्रतीक है कि कोई ना कोई समस्या हो रही है तभी नागरिकता छोड़ लोग कनाडा, अमेरिका थाइलैंड, पेरू मलेशिया ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की नागरिकता लेने में विश्वास दिखा रहे हैं। सभी जानते हैं कि अपने यहां से जाकर किसी देश की नागरिकता लेने में काफी कठिनाईयां सामने आती हैं और अपना घर छोड़कर भी कोई आसानी से नहीं जा सकता तो फिर ऐसा क्यों हो रहा है। कहने को तो इस बारे में लोग बहुत कुछ कहते हैं मगर मेरा मानना है कि इस बारे में सभी को सोचने की आवश्यकता है। क्योंकि इस नागरिकता को छोड़ने का अर्थ यह भी निकाला जा सकता है कि लोगों को वह सुविधाएं देश में नही मिल रही है जो वो चाहते हैं।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
गोवा और अरूणाचल प्रदेश की आबादी के बराबर भारतीयों ने क्यों छोड़ी नागरिकता
0
Share.