asd सरकारी हुक्मरान मकान बनाने के लिए अब क्यों नहीं लेते लोन, आखिर करोड़ों की संपत्ति बन कैसे रही है

सरकारी हुक्मरान मकान बनाने के लिए अब क्यों नहीं लेते लोन, आखिर करोड़ों की संपत्ति बन कैसे रही है

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घर बनाने या सुधार के लिए बैंक से सस्ता लोन विभाग द्वारा दिए जाने के बावजूद नौकरशाहों ने पिछले 14 साल से इस काम के लिए कोई लोन नहीं लिया। आज इस बारे में पढ़ने को मिली एक खबर के अनुसार यूपी में 14 साल से नौकरशाहों ने घर बनाने के लिए सरकार से कोई मदद नहीं ली है। नए भवन के निर्माण के लिए 7.5 लाख रुपये और मरम्मत के लिए 1.80 लाख रुपये दिए जाने का प्रावधान है लेकिन, यह राशि बेहद कम होने के चलते अब कोई भी आईएएस या पीसीएस अधिकारी इस मद में अग्रिम राशि (एडवांस) नहीं लेता।
इन अधिकारियों को अपने वेतन के सापेक्ष एडवांस नियुक्ति विभाग के जरिये लेना होता है। इस संबंध में 12 अक्तूबर 2010 का शासनादेश लागू है। इसमें कहा गया है कि भवन निर्माण या खरीदने के लिए अग्रिम की सीमा वेतन बैंड में 34 माह का वेतन और अधिकतम 7.5 लाख रुपये तक होगी। इसी तरह से भवन मरम्मत या विस्तार के लिए अग्रिम की सीमा अधिकतम 1.80 लाख रुपये होगी।
उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना हैं कि समय के साथ नियम नहीं बदले तो अफसरों ने सरकार से खुद मदद लेने की योजना में रुचि लेना ही बंद कर दिया। अगर भवन निर्माण या खरीदने के लिए यही राशि बढ़ाकर 50 लाख रुपये कर दी जाए तो अधिकारी रुचि लेने लगेंगे। क्योंकि यह बैंक लोन से काफी सस्ता पड़ता है।
अधिकारियों के लिए घर बनाने के लिए बैंक लोन के मुकाबले सरकार से एडवांस लेना काफी सस्ता पड़ता है। एडवांस पर 7 फीसदी सलाना की दर से ब्याज लिया जाता है, जबकि बैंक से होम लोन लेने पर 8.50 प्रतिशत से लेकर 11.30 प्रतिशत तक सलाना ब्याज देना पड़ता है। एडवांस लेने पर रजिस्ट्री के मूल दस्तावेज भी विभाग में जमा करने होते हैं। इसलिए उसके बाद बैंक से लोन भी नहीं ले सकते। इसलिए भी इस योजना में किसी भी अधिकारी की कोई रुचि नहीं रह गई है।
सवाल यह उठता है कि इस संदर्भ में 50 लाख रूपये सीमा किए जाने की मांग सूत्रों के द्वारा की जा रही बताई जाती है। यह सभी जानते हैं कि अब घर लेना या सुधरवाना महंगा हो गया है। पुरानी सीमा के अंदर इतने बड़े समय से किसी ने लोन नहीं लिया और 50 लाख की बात चल रही है तो मकान तो नौकरशाह बना ही रहे हैं वो भव्य और महंगे भी होते हैं। ज्यादातर बड़े अफसर नामचीन कॉलोनियों या जगहों पर घर बनाना पसंद करते हैं। अभी 50 लाख की राशि देेने की बात हुई नहीं कि आखिर नौकरशाहों पर पैसा आ कहां से रहा है। कोई कहे कि घर परिवार की आमदनी से सहयोग मिल सकता है तो यह तो जब हुक्मरान लोन लेते थे तब भी होता था। अब कोई नई बात नहीं है। मौखिक सूत्रों का यह कहना भ्ीा सही लगता है कि सरकार के बाबुओं की इनकम पर नजर रखने वाले विभाग को जांच पड़ताल करानी चाहिए। क्योंकि अब मकान करोड़ों में बनते हैं तो वो रकम आखिर आ कहां से रही है।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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