सरकार केन्द्र की हो या प्रदेश की किसी भी दल की हो हर कोेई अपने अपने हिसाब से जनहित की योजनाऐं बनाने और उन्हें लागू कराने तथा पात्रों को उनका लाभ पहुंचाने की भरपूर कोशिश करती है। और इसके लिए कई आयोग तथा ट्रिब्यूनल भी बनाये जाते है। मेरा हमेशा ही कहना रहा है कि अगर इनके सदस्य संबंधित विषयों की जानकारी सही प्रकार से कर पात्रों को इसका लाभ पहुंचाना चाहते है तो उन्हें गांव मौहल्लों में जाकर जमीनी जानकारी की जाए और फिर निर्णय लिये जाए तो एक बड़े संबंधित वर्ग के लोगों को उसका लाभ मिल सकता है। लेकिन पांच सितारा होटलों या ऐसे ही दफ्तरों के कमरों में बैठकर चाय के प्यालों की खनखनहाट के बीच बिन्दुओं पर कम और फालतू की चर्चा कर जो निर्णय लिये जाते है उनका लाभ कम पात्र व्यक्तियों को नुकसान ज्यादा होता है।
इसके उदाहरण के रूप में इस खबर का अवलोकन किया जाए तो जो मैं हमेशा कहता आया हूं वो सच साबित हो रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने पुणे के एक गांव में 1960 से चल रहे कुष्ठ रोगियों के लिए एक केंद्र को हटाने के नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश को रद्द कर दिया। शीर्ष सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एनजीटी ने न मुद्दे पर चर्चा की और न ही कारण बताए और केंद्र को हटाने का आदेश पारित कर दिया, जबकि अतिक्रमणकारियों ने स्पष्ट कहा था कि उनका वन भूमि से कोई लेना-देना अदालत ने एनजीटी के आदेश को निर्मम भी नहीं है और उन्होंने कोई अतिक्रमण नहीं किया है करार दिया।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने मंगलवार को अपने फैसले में कहा, इंसानियत नाम की भी कोई चीज होती है; कुछ ऐसा जिसे करुणा और सहानुभूति कहा जाता है। वे (कुष्ठ रोगी) समाज का हिस्सा हैं। हम पांच सितारा होटलों में समावेशिता और अन्य चीजों पर व्याख्यान दे रहे हैं और यहां समाज की बात सुने बिना ही एक क्रूर आदेश पारित कर दिया जाता है। इस देश में वनों और पर्यावरण के नाम पर हर तरह की चीजें हो रही हैं।
शीर्ष अदालत ने कहा कि एनजीटी को वन भूमि में कथित अतिक्रमण हटाने के लिए ऐसा व्यापक आदेश पारित करने से पहले कम से कम दशकों से चल रहे सोसाइटी की बात को सुनना चाहिए था। एनजीटी ने वन भूमि पर अतिक्रमण के लिए अधिकारियों को कुष्ठ रोग निवारण केंद्र को हटाने का आदेश दिया था।
प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन नहीं
एनजीटी ने प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन नहीं किया और यह निर्धारित किए बिना ही व्यापक निर्देश पारित कर दिया कि क्या जिस भूमि पर अतिक्रमण की बात की जा रही है वह वन भूमि है और यदि हां तो क्या उसे प्रासंगिक कानूनों के तहत विधिवत अधिसूचित किया गया है। पीठ ने यह भी कहा कि भूमि पर काबिज चौरिटेबल ट्रस्ट को अपनी बात रखने का मौका तक नहीं दिया गया। एनजीटी ने पुणे के एक व्यक्ति की शिकायत पर यह आदेश दिया था।
माननीय सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत एवं जस्टिस उज्जल भुईया की पीठ द्वारा जो यह फैसला दिया गया वो वाकई में जनहित का और कहा जा सकता है कि पात्र और मजबूर व्यक्तियों को ऐसे ही न्याय मिल सकता है। वर्ना पांच सितारा होटलों की सांस्कृति अपनाने वालों से तो आसानी से किसी का भला होने वाला लगता नहीं है।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
पांच सितारा होटलों में बैठकर लिये जाने वाले निर्णयों पर लगे रोक
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