एक समय था जब राजनीतिक दल की बैठके और सभाओं में आने वाली भींड और मौजूद रहे मतदाताओं की संख्या काफी बढ़ाचढ़ाकर प्रदर्शित की और कराई जाती थी। दर्शकों के अनुसार अब धार्मिक आयोजनों तथा अन्य प्रकार के जलसों और सभाओं में आने वाले दर्शकों और भक्तों तथा श्रोताओं की भीड़ कुछ ज्यादा ही बढ़ाचढ़ाकर बताई जाने लगी। इसके पीछे क्या उद्देश्य होता है ऐसा तो करने वाले ही जाने। मगर सीधे सीधे देखे तो भींड के दावों के अनुसार जो व्यवस्थाऐं सुरक्षा और अन्य इंतजामों के लिए की जाती है वो ज्यादा से ज्यादा हो सके और कहीं कुछ हो जाए तो यह कहा जा सके कि हमने तो पहले ही कहा था रिपोर्ट भी दी थी पर भींड के अनुसार व्यवस्था नहीं हुई।
एक प्रकार से चुनावों के दौरान जिस दल के उम्मीदवार हारने की स्थिति में होते है ज्यादातर उनके द्वारा हमेशा ही यह कौशिश की जाती है कि अपने दल के प्रमुख लोगों को पूर्व में ही सूचित कर दिया जाए कि चुनाव में मतदान और मतगणना के दौरान धांधली हो सकती है और प्रचार के दौरान सत्ता पक्ष या जीतने वाले उम्मीदवार के इसारे पर कठिनाईयां खड़ी की जा रही है जैसी पेशबंदी परिणाम आने के बाद कार्रवाई और बेईज्जती से बचने के लिए खूब सुनने को मिलती थी।
पूर्व में कांवड़ मेले के दौरान कुछ वर्ष पूर्व एक मंदिर की प्रबंधन समिति के सचिव द्वारा दावा किया गया कि इतने लाख लोगों ने जल चढ़ाया। जब उनसे पूछा कि इतने भक्त इतने घंटों में कैसे जल चढ़ा सकते है तो इनके पास जबाव नहीं था। पाठकों का मानना है कि जबाव वर्तमान में जो आयोजन चल रहे है उनके आयोजकों के पास भी नहीं होगा बहस भले ही कर लें। मेरा मानना है कि किसी भी आयोजन चाहे वो राजनीतिक हो या धार्मिक अथवा किसी और प्रकार का उसमें जुटने वाली भींड को लेकर जो दावे किये जाते है उसकी पहले जांच होनी चाहिए। और उसके उपरांत ऐसी व्यवस्थाऐं की जाए जो कहीं जाम न लगे और नागरिकों को परेशानी न हो।
दूसरा आयोजन कैसा भी हो जब आयोजक टैंट सामियाना लगाने वाले और अन्य काम करने वालों को पूरा भुगतान करते है और हर कोई हर काम के पैसे लेता है तो जितनी भींड जुटने का दावा आयोजकों द्वारा किया जाता है उसमें लगाई जाने वाली फोर्स जितने समय के लिए लगाई जाए उतने का भुगतान अग्रिम रूप से सुरक्षाबलों और लगाये जाने वाले अधिकारियों को होने वाले भुगतान का कराया जाए। मेरा मानना है कि भींड ज्यादा जुटने के दावे कम होने लगेंगे दूसरे जो कानून व्यवस्था प्रभावित होती है वो भी नहीं होगी। और कुछ लोगों की वहावाही के लिए जो फोर्स लगाई जाती है उसकी जो तनख्वाह नागरिकों के खून पसीने से प्राप्त टैक्सों में से दी जाती है वो बचेगी उसका उपयोग सुरक्षाबलों को सुविधाऐं उपलब्ध कराने और विकास कार्यों को गति देने में किया जा सकता है।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
भींड जुटने के दावों की हो जांच, आयोजक जब हर चीज का भुगतान करते है तो सुरक्षाबलों की तनख्वाह भी ली जाए
0
Share.