वर्तमान समय में अमीर हो या गरीब हर आदमी भागमभाग में लगा और परेशान नजर आ रहा है। जीवन में एक दूसरे को देख सुविधाएं जुटाने और पैसा कमाने व बिना कुछ करे रईश बनने की इच्छा को लेकर भागमभाग में लगा हर व्यक्ति बात करने पर एक ही शब्द दोहराता है कि काम नहीं है आथ्रिक कठिनाई चल रही है। व्यवसाय में नुकसान हो रहा है। मैं यह तो नहीं कहता कि यह सब गलत कह रहे हैं मगर एक बात जरूर है कि अगर हमारी आमदनी अठन्नी और हम खर्चा रूपया करेंगे को परेशानी होगी ही। आय कम हुई तो उसे नुकसान समझेंगे तो कठिनाई सामने खड़ी होंगे। मां बाप अपनी इच्छा पूरी ना होने पर बच्चों को परेशान करते हैं और खुद भी परेशान रहते हे। रूखी सुखी खाय के ठंडा पानी पियूं, दूसरों की चुपड़ी देखकर मत ललचाउं जी के समान अगर इन कारणों को अगर त्याग दिया जाए तो यह कहा जा सकता है कि 80 प्रतिशत समस्याएं जिन्हें लेकर लोग तनाव में रहते हैं या दूसरे की आलोचना करते करते खुद ही नकारात्मक सोच के कारण हीनभावना का शिकार होने लगते हैं वो इससे बच सकते हैं। मैं यह तो नहीं कहता कि इच्छाएं नहीं होनी चाहिए। जिसमें यह नहीं होगी वह तो बेकार हो जाए मगर जरूरत से ज्यादा इच्छा करेंगे तो परेशानियां तो खड़ी होनी ही है। कहते हैं कि गाय दूध नहीं देती। दोस्तों गाय दूध देती नहीं है निकालना पड़ता है। चादर से ज्यादा पैर फैलाने की कहावत भी है। तो पैर भी फैलाने चाहिए और चादर का नाप भी बड़ा करना चाहिए लेकिन सब रचनात्मक सोच के साथ करते रहें तो हम हीनभावना का शिकार नहीं होगे।
एक बात मुझे कई बार सोचने को मजबूर करती है कि लोग कहते है कि परेशानी में परिवार दोस्तों ने साथ नहीं दिया। एक प्रकार से चौराहे पर खड़ा छोड़ गए। इस पर मेरा कहना है कि हम जो दूसरों से इच्छाएं रखते हैं हमारे अपने भी हमसे कुछ उम्मीद रखते होंगे। जब उन्हें जरूरत पड़ती है तो हमारे पास 50 काम निकलकर आ जाते है। ऐसी सोच रखने वाले दूसरों से उम्मीद क्यों करते हैं। यह विषय सोचने का है। मेरा मानना है कि हम कितने व्यस्त और परेशान हो तो हमें अपनों के लिए समय भी निकालना चाहिए और आर्थिक मदद एकत्र करनी चाहिए और अपनों के विश्वास और समर्पण को ठेस कभी नहीं पहुंचानी चाहिए। अगर हम इसमें सफल हो जाते हैं तो मुझे लगता है कि तमाम समस्याओं का समाधान अपने आप ही होने लगेगा। क्योंकि अच्छे दोस्त ईमानदार आदमी और समर्पित सहयोगी मुश्किल से मिलते है। जीवन में खुशहाली बनानी है तो उन्हें अपने से अलग सोचना ही नहीं चाहिए। अगर वो जाना भी चाहे तो उन्हें रोके क्योंकि अपने मुश्किल से मिलते हैं। अगर दूर हो गए तो सबको पछताना पड़ता है।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
क्या हमनें सोचा है हम परेशान क्यों रहते हैं!
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