नई दिल्ली 11 दिसंबर। सर्वोच्च न्यायालय ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 14 के तहत हिंदू महिलाओं को दिए गए संपत्ति अधिकारों की जटिल व्याख्याओं को सुलझाने का फैसला लिया है, जो संभवतः छह दशकों से चला आ रहा एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन चुका है।
अब यह सवाल उठता है क्या एक हिंदू पत्नी को अपने पति द्वारा वसीयत में दी गई संपत्ति का पूर्ण स्वामित्व अधिकार मिलता है भले ही वसीयत में उस पर कोई प्रतिबंध क्यों न लगाया गया हो?
इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि यह मुद्दा हिंदू महिलाओं के अधिकारों उनके परिवारों और संपत्ति के संबंध में सभी दावों और आपत्तियों को प्रभावित करता है। यह मुद्दा कानून की व्याख्या से कहीं आगे बढ़कर समाज के विभिन्न वर्गों के जीवन को प्रभावित करने वाला है। इससे यह तय होगा कि क्या हिंदू महिलाओं को अपनी संपत्ति का उपयोग, स्थानांतरण और बिक्री करने की पूरी स्वतंत्रता होगी या नहीं।
इस पूरे विवाद की शुरुआत 1965 में की गई एक वसीयत से हुई थी। कंवर भान नामक एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी को अपनी मृत्यु तक एक जमीन पर कब्जा करने और उसे उपयोग करने का अधिकार दिया था लेकिन वसीयत में यह शर्त भी थी कि उसकी मृत्यु के बाद वह संपत्ति उसके उत्तराधिकारियों को वापस कर दी जाएगी।
वर्षों बाद पत्नी ने खुद को उस संपत्ति का पूरा मालिक बताते हुए उसे बेच दिया। इसके बाद जमीन के खरीदार के बेटे और पोते ने इस बिक्री को चुनौती दी और मामला अदालतों में पहुंच गया। इस मामले ने कई स्तरों पर विरोधाभासी फैसले उत्पन्न किए।
प्रारंभ में ट्रायल कोर्ट और अपीलीय अदालत ने 1977 में तुलसम्मा बनाम शेषा रेड्डी के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया जिसमें हिंदू महिलाओं को संपत्ति पर पूर्ण स्वामित्व का अधिकार देने के लिए धारा 14(1) की व्यापक व्याख्या की गई थी।
हालाँकि पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने इस पर असहमति जताई और 1972 में कर्मी बनाम अमरू के मामले में सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि वसीयत में किए गए विशिष्ट प्रतिबंध धारा 14(2) के तहत महिला के संपत्ति अधिकारों को सीमित कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का यह नया निर्णय इस जटिल मुद्दे को एक बार और सभी के लिए स्पष्ट करेगा। इस मामले की सुनवाई में सामने आए सवालों का प्रभाव लाखों हिंदू महिलाओं पर पड़ेगा क्योंकि इससे यह तय होगा कि महिलाओं को अपनी संपत्ति पर कितनी स्वतंत्रता प्राप्त होगी। क्या वे बिना किसी हस्तक्षेप के अपनी संपत्ति का उपयोग, स्थानांतरण और बिक्री कर सकती हैं या क्या उन्हें कुछ प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा?
वहीं सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद यह साफ हो जाएगा कि हिंदू महिलाओं को संपत्ति के अधिकारों में पूर्ण स्वायत्तता मिलती है या नहीं। यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है बल्कि समाज में महिलाओं के अधिकारों के परिप्रेक्ष्य में भी एक मील का पत्थर साबित होगा।