Date: 23/12/2024, Time:

हाशिमपुरा नरसंहार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 10 दोषियों को दी जमानत

0

नई दिल्ली 07 दिसंबर। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के हाशिमपुरा नरसंहार मामले में 10 दोषियों को जमानत दे दी। मामला साल 1987 का है। UP के प्रॉविंशियल आर्म्ड कॉन्स्टब्युलरी (PAC) के अफसरों और जवानों ने 42 से 45 लोगों को गोली मारी थी। इसमें 38 लोगों की मौत हुई थी।

न्यूज वेबसाइट लाइव लॉ के मुताबिक जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच के सामने पेश सीनियर एडवोकेट अमित आनंद तिवारी ने दलील दी कि दिल्ली हाईकोर्ट ने गलत तथ्यों के आधार पर ट्रायल कोर्ट का फैसला पलटा था।

ट्रायल कोर्ट ने घटना के करीब 28 साल बाद 2015 में फैसला सुनाते हुए सभी आरोपियों को सबूतों की कमी के आधार पर बरी कर दिया था। हालांकि, दिल्ली हाईकोर्ट ने 2018 में 16 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई। एडवोकेट तिवारी ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, लेकिन सभी 2018 से जेल में हैं। इस वजह से उन्हें जमानत दी जाए।

1987 में मेरठ के हाशिमपुरा इलाके में सांप्रदायिक तनाव के दौरान एक भयावह घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था. 22 मई को पीएसी (प्रांतीय सशस्त्र बल) की 41वीं बटालियन की सी-कंपनी के जवानों ने इलाके से करीब 50 मुस्लिम पुरुषों को घेर लिया और उन्हें हाशिमपुरा से दूर शहर के बाहरी इलाके में ले जाकर गोलियों से भून दिया. मृतकों के शवों को एक नहर में फेंक दिया गया. इस भयानक घटना में 35 लोग मारे गए, जबकि पांच लोग किसी तरह बचने में सफल रहे.

इस नरसंहार से बचे पांच लोगों ने घटना की दर्दभरी कहानियां साझा कीं. उनकी गवाही ने इस जघन्य अपराध की सच्चाई को दुनिया के सामने लाया. हाशिमपुरा नरसंहार भारतीय इतिहास की उन घटनाओं में से है, जिसने न केवल कानून व्यवस्था पर सवाल उठाए, बल्कि मानवता को भी कटघरे में खड़ा किया. इस घटना के पीड़ित परिवारों को न्याय दिलाने की लड़ाई लंबे समय तक चली.

बताते चले कि वहां PAC जवानों ने उन लोगों को गोली मार दी। कुछ शवों को गंग नहर में और बाकी को हिंडन नदी में फेंक दिया। इसमें 38 लोग मारे गए। ज्यादातर के शव तक नहीं मिले। सिर्फ 11 शवों की पहचान उनके रिश्तेदारों ने की। हालांकि, पांच लोग बच गए। गोलीबारी के दौरान उन्होंने मरने का नाटक किया और पानी से तैरकर निकल गए। मामले को उनकी गवाही को आधार पर बनाया गया।

याचिकाकर्ताओं समी उल्लाह, निरंजन लाल, महेश प्रसाद और जयपाल सिंह-का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता तिवारी ने शुक्रवार को तर्क दिया कि अपीलकर्ता हाईकोर्ट के फैसले के बाद से छह साल से अधिक समय से जेल में हैं। उन्होंने कहा कि अपीलकर्ताओं को पहले अधीनस्थ अदालत द्वारा बरी किया जा चुका है तथा अधीनस्थ अदालत में सुनवाई और अपील प्रक्रिया के दौरान उनका आचरण अच्छा रहा है।

उन्होंने यह भी तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने अधीनस्थ अदालत द्वारा सोच-विचारकर सुनाए गए बरी करने के फैसले को पलटने का गलत आधार पर निर्णय लिया। अदालत ने दलीलों पर गौर किया और आठ दोषियों की आठ लंबित जमानत याचिकाओं को स्वीकार कर लिया।

Share.

Leave A Reply