नई दिल्ली 06 दिसंबर। इसरो (ISRO) ने गुरुवार (5 दिसंबर) को श्रीहरिकोटा से प्रोबा-3 मिशन सफलतापूर्वक लॉन्च किया। यह मिशन सूर्य के बाहरी वातावरण और अंतरिक्ष मौसम का अध्ययन करने के लिए डिजाइन किया गया है। दो उपग्रहों पर आधारित इस मिशन को इसरो ने यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) के साथ मिलकर तैयार किया गया है। इसरो के वैज्ञानिक अपने इस मिशन से सूर्य की अनदेखी गहराइयों को समझने में एक बड़ी छलांग है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने एक्स पर पोस्ट करके जानकारी दी कि PSLV-C59 ने अंतरिक्ष की ओर उड़ान भरकर एक नया इतिहास रच दिया है। यह मिशन NSIL के नेतृत्व में और ISRO की अग्रणी तकनीक के सहयोग से ESA के अत्याधुनिक PROBA-3 उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने का एक महत्वपूर्ण कदम है। यह अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का एक उत्कृष्ट उदाहरण है और भारत की बढ़ती अंतरिक्ष क्षमताओं को प्रदर्शित करता है।
क्या है प्रोबा-3 मिशन
प्रोबा-3 मिशन सूर्य के कोरोना का अध्ययन करने के लिए डिजाइन किया गया है। कोरोना सूर्य का बाहरी वातावरण है, जो सूर्य की सतह से कहीं ज्यादा गर्म होता है। यह अंतरिक्ष के मौसम का भी स्रोत है, जिससे यह वैज्ञानिकों के लिए खास रुचि का विषय है। प्रोबा-3 मिशन में दो उपग्रह हैं: Coronagraph (310 किलोग्राम) और Occulter (240 किलोग्राम)। ये दोनों उपग्रह मिलकर एक अनोखा प्रयोग करेंगे। Occulter उपग्रह सूर्य की डिस्क को ढक लेगा, जिससे Coronagraph उपग्रह सूर्य के कोरोना का स्पष्ट रूप से अवलोकन कर पाएगा। यह तकनीक सूर्य के कोरोना के बारे में अध्ययन करने में मदद करेगी।मिशन का एक मुख्य उद्देश्य सटीक फॉर्मेशन फ्लाइंग का प्रदर्शन करना भी है। दोनों उपग्रहों को एक साथ, एक के ऊपर एक, निर्धारित कक्षा में स्थापित किया गया है। इस तकनीक का सफलतापूर्वक प्रदर्शन भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों के लिए नए रास्ते खोलेगा।
PSLV-C59 रॉकेट का हुआ इस्तेमाल
इस लॉन्च के लिए PSLV-C59 रॉकेट का इस्तेमाल किया गया, जो 44.5 मीटर ऊंचा है। यह PSLV रॉकेट की 61वीं उड़ान और PSLV-XL संस्करण का 26वां मिशन था। PSLV-XL संस्करण भारी उपग्रहों को लॉन्च करने के लिए डिजाइन किया गया है। शाम 4:04 बजे लॉन्च होने के बाद Coronagraph और Occulter उपग्रह 18 मिनट की यात्रा के बाद अपनी निर्धारित कक्षा में पहुंच गए। एक बार कक्षा में पहुंचने पर दोनों उपग्रह 150 मीटर की दूरी पर रहकर एकीकृत उपग्रह प्रणाली के रूप में काम करेंगे।
स्पेस वेदर पर रिसर्च का लक्ष्य
प्रोबा-3 मिशन का उद्देश्य अंतरिक्ष मौसम (Space Weather) की बेहतर समझ विकसित करना है। यह सौर तूफान और कोरोनल मास इजेक्शन जैसे खतरों की स्टडी करेगा। इस मिशन के जरिए वैज्ञानिक यह भी पता लगाना चाहते हैं कि सूर्य की सतह की तुलना में उसका कोरोना अधिक गर्म क्यों है और सौर हवा (Solar Wind) कैसे पैदा होती है। यह शोध आने वाले समय में देश के स्पेस मिशन और पृथ्वी पर सूर्य के प्रभाव को समझने में मदद करेगा।
इसरो और ईएसए की 10 साल की मेहनत
यह मिशन यूरोपियन स्पेस एजेंसी और इसरो के बीच 10 साल की मेहनत का नतीजा है। ईएसए ने इसरो के साथ इस प्रोजेक्ट को इसलिए चुना क्योंकि भारतीय एजेंसी लागत और प्रदर्शन दोनों में दक्ष मानी जाती है। मिशन की कुल लागत लगभग 200 मिलियन यूरो है, जिसमें 40 यूरोपीय कंपनियों से मिलकर जुटाया गया है। इस सहयोग ने वैश्विक अंतरिक्ष अनुसंधान में एक नई मिसाल कायम की है।
दो साल तक चलेगा प्रोबा-3 मिशन
प्रोबा-3 मिशन दो साल तक चलेगा। यह वैज्ञानिकों को सूर्य के बाहरी हिस्सों की बेहतर समझ देगा और अंतरिक्ष मिशनों के लिए नई तकनीकों को वैलिडेट करेगा। इसरो अध्यक्ष ने इसे “आर्टिफिशियल ग्रहण बनाने वाला मिशन” बताया। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह मिशन सूर्य के बारे में हमारी समझ को नया आयाम देगा। प्रोबा-3 भारतीय और इंटरनेशनल स्पेस कम्युनिटी के लिए एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है।