अजमेर 28 नवंबर। अजमेर शरीफ दरगाह को लेकर एक नया विवाद सामने आया है जिसमें हिंदू सेना के प्रमुख विष्णु गुप्ता ने दरगाह के सर्वेक्षण की मांग की है। उनका दावा है कि यह दरगाह सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का मकबरा नहीं बल्कि एक शिव मंदिर था। इस मामले को लेकर अदालत में सुनवाई शुरू हो गई है और अब इस पर आगे की सुनवाई 20 दिसंबर को होगी।
विष्णु गुप्ता ने अपनी याचिका में कहा है कि अजमेर शरीफ दरगाह जो सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का मकबरा है असल में एक हिंदू शिव मंदिर था। गुप्ता का दावा है कि जैसे काशी और मथुरा में मंदिरों को लेकर विवाद है वैसे ही अजमेर में भी एक मंदिर की मौजूदगी है।
अजमेर की एक स्थानीय अदालत ने गुप्ता की याचिका पर केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) और अजमेर दरगाह समिति को नोटिस जारी किया है। अदालत ने गुप्ता से पूछा कि वह यह याचिका क्यों दायर कर रहे हैं और गुप्ता ने अपनी बात अदालत के सामने रखी। इसके बाद अदालत ने संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया है और अब इस मामले पर 20 दिसंबर को फिर से सुनवाई होगी।
वहीं गुप्ता ने अपनी याचिका में एक ऐतिहासिक दस्तावेज का हवाला दिया जिसमें ब्रिटिश शासन के दौरान एक महत्वपूर्ण व्यक्ति हर बिलास सारदा ने 1910 में यह दावा किया था कि दरगाह के तहखाने में एक हिंदू मंदिर था जिसमें महादेव की मूर्ति थी। गुप्ता ने कहा, “सारदा ने अपनी किताब में लिखा था कि इस मंदिर में पूजा होती थी और वहां हर दिन ब्राह्मण परिवार पूजा करने आता था।”
उन्होंने यह भी दावा किया कि अजमेर में अभी भी उस जगह के आसपास की संरचनाएं और लोग इस बात को मानते हैं कि 50 साल पहले तक वहाँ एक पुजारी पूजा करता था और शिवलिंग भी था।
वहीं गुप्ता ने कहा कि वह चाहते हैं कि एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) इस स्थान का सर्वेक्षण करे ताकि इस सचाई का खुलासा हो सके। उनका यह भी दावा है कि दरगाह को हिंदू मंदिर घोषित किया जाना चाहिए और अगर यह किसी पंजीकरण में है तो उसे रद्द किया जाना चाहिए।
अजमेर शरीफ दरगाह का इतिहास काफी पुराना है और यह अगले साल जनवरी में अपना 813वां उर्स मनाने जा रहा है। गुप्ता ने इस बात पर भी सवाल उठाया कि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का जन्म यहां नहीं हुआ था और वह यहां के नहीं थे। उनका कहना था कि इससे पहले इस जगह पर पृथ्वीराज चौहान का शासन था और अजमेर शहर का नाम “अजयमेरु” था।
बताते चले कि हिंदू संगठन लंबे समय से अजमेर दरगाह को मंदिर बता रहे हैं. साल 2022 में हिंदू संगठन महाराणा प्रताप सेना ने इसके मंदिर होने का दावा करते हुए तत्कालीन राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और केंद्र सरकार को पत्र लिखकर इसकी जांच कराने के लिए कहा था. महराणा प्रताप सेना के पदाधिकारियों ने एक तस्वीर भेजी थी, जिसमें अजमेर दरगाह की खिड़कियों पर स्वस्तिक के निशान होने का दावा किया गया था. संगठन के संस्थापक राजवर्धन सिंह परमार ने दावा किया था कि अजमेर दरगाह एक शिव मंदिर था जिसे दरगाह बना दिया गया.