asd असामाजिक तत्वों और गलत धंधा करने वालों का महिमामंडन क्यों

असामाजिक तत्वों और गलत धंधा करने वालों का महिमामंडन क्यों

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काल कोई भी रहा उस समय भी हो हर वो कार्य होता ही था जिसे हम गलत की श्रेणी में रखते हैं लेकिन उस समय समाज विरोधी या संस्कृति के खिलाफ जाकर जो भी कार्य किया जाता था उससे संबंध व्यक्ति को हम अच्छी छवि से नहीं देखते थे। चाहे वह कितना ही समाजसेवी या धर्म कर्म वाला हो। हमें उस संबंध में कई प्रकरण और उनसे संबंध चर्चा हम आज भी करते है को देखा जा सकता है। कलयुग में भी ऐसे अनेको कार्य हो रहे है लेकिन फर्क सिर्फ इतना है कि तब हम ऐसे लोगों को पास खड़ा करने से परहेज करते थे और उससे दूरी बनाकर चलते थे और उससे बातचीत भी नहीं की जाती थी। लेकिन वर्तमान समय में दुष्कर्म सरकारी पैसे में गडबड़ी गलत धंधों को बढ़ावा देने वालों को हम अपने साथ भी बैठाते हैं और अपने यहां बुलाकर उन्हें अनुग्रहीत भी करते है। कुछ सालों में एक राजनीतिक दल के बड़े नेताओं के नाम दुष्कर्म में चर्चित रहे तो आजकल नकली स्टांप छापने वालों होटल में जुआ पकड़े जाने और कुछ साल पहले एक व्यक्ति के यहां कुछ करोड़ की पुरानी करेंसी पकड़ी गई थी ऐसे अनेको किस्से होने और हम उन्हें सपोर्ट करने या कुछ दिनों में भूलकर गलबहियां करने में लग जाते हैं। इस काम में वो लोग भी दूर नहीं है जिन पर सरकार ने किसी समारोह में बिना जांच कराए जाने पर पाबंदी लगा रखी है लेकिन बेशर्मी का सहारा और गलत धंधों को महिमांडित करने का हाल ऐसा हो रहा है कि जिन्हें जनता पसंद नहीं करती और सरकार होना नहीं देना चाहती वो हो रहे हैं। परिणाम वही ढाक के तीन पात वाली किवदंती पर सही उतरते हैं।
कुछ दशक पहले भारत आए एक अंग्रेज ने अपने यहां जाकर लोगों को बताया था कि भारत के लोग बड़ी से बड़ी बातों को कुछ दिनों में भूल जाते हैं। हम सरकारी नीतियों को तोड़कर अनेक प्रकार के गलत धंधे करने में अग्रणी भूमिका निभाने में नहीं डर रहे हैं। शायद इसीलिए सारी व्यवस्था बिगड़ती नजर आती है। मुझे लगता है कि समाज में अच्छी छवि के जो प्रमुख लोग हैं उन्हें बुरी व्यवस्थाओं को रोकने के लिए अपनी भूमिका निभानी चाहिए। क्योंकि अगर ऐसा ही चलता रहा तो हम जागरूकता अभियान ही चलाते रहेंगे और समाज की स्थिति बड़ी खराब हो सकती है। ऐसे में गरीब और गरीब और धनवान शक्तिमान बनता रहेगा। जिस दिन यह संतुलन बिगड़ेगा पूरी व्यवस्था बिगड़ जाएगी। अब यह कहकर शांत नहीं बैठा जा सकता है कि जैसा खाओ अन्न वैसा रहे मन्न। हमें इस किवदंती को बदलकर चलने में भूमिका निभानी होगी।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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