asd कब तक मरते रहेंगे बच्चे, आखिर कब तक आग की घटनाओं से बचाव के होते रहेंगे दावे, पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं किए जाते अस्पतालों और नर्सिंग होमों में

कब तक मरते रहेंगे बच्चे, आखिर कब तक आग की घटनाओं से बचाव के होते रहेंगे दावे, पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं किए जाते अस्पतालों और नर्सिंग होमों में

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सरकार आगजनी की होने वाली घटनाओं और उससे बच्चों व नागरिकों की जान बचाने के उपाय और आगजनी से सबक लेने को शायद तैयार नहीं है। क्योंकि अगर ऐसा होता तो धुएं और हाहाकार के बीच झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में दस शिशुओं की जान नहीं जाती।
कुछ साल पहले गोरखपुर में बच्चों के मरने का एक हादसा हुआ था। और अन्य ऐसी घटनाओं के दौरान हमेशा मरने वालों के परिजनो को सांत्वना और मुआवजे की घोषणा के साथ बड़े बड़े दावे ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए पूर्व में किए जा रहे हैं लेकिन कितने ताज्जुब की बात है कि ना तो डॉक्टर सही जानकारी देने को तैयार हैं । जानकारों का कहना है कि देर रात जज्जा बच्चा वार्ड में ऑक्सीजन कंसनट्रेटर से लगी आग। तो कुछ लोगों का कहना है कि जब इससे धुंआ निकल रहा था तो डॉक्टर से यह उम्मीद की जा रही थी कि वह यहां फंसे शिशुओं को बचाने की कोशिश करेंगे उस समय चर्चा अनुसार इस हादसे के समय मौजूद डॉक्टर बाहर चले गए। अगर वह प्रयास करते तो कुछ और बच्चों की जान भी बच सकती थी। इससे संबंध समाचारों से पता चलता है कि अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करने के स्थान पर स्टाफ भी वहां से भाग निकला। सवाल यह उठता है कि सेना और दमकल विभाग की सहायता से आग पर काबू पा लिया गया। मुख्यमंत्री योगी ने घटना का जायजा लेने के लिए डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक और प्रमुख सचिव स्वास्थ्य को भेजा और 12 घंटे में इस घटना की रिपोर्ट भी मांगी है। लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर कब तक इस प्रकार से लोग और बच्चे आगजनी की घटनाओं में मरते रहेंगे। और हम उन्हें श्रद्धांजलि व मुआवजा देते रहेंगे। लेकिन ऐसी घटनाओं की पुनरावृति ना हो इसके लिए पूर्ण इंतजाम कब किए जाएंगे। मेरा मानना है कि पूरा देश इस घटना की खबर को पढ़कर हतप्रभ रह गया क्योंकि बच्चों की मौत की खबर किसी भी व्यक्ति को हिला देने में सक्षम होती है। वो तो यह अच्छा है कि कोई कच्चे दिल का व्यक्ति इस खबर को पढ़कर भगवान को प्यारा नहीं हुआ। अब समय आ गया है कि अस्पतालों में ऐसी व्यवस्था हो जो आगजनी या अन्य दुर्घटनाओं में किसी को अपनी जान से हाथ ना धोना पड़े क्योंकि संवेदना व्यक्त करने या मुआवजा देने से परिजनों के दुख की भरपाई आसानी से नहीं हो पाती है। इस तथ्य पर अब हमें हर हाल में सोचना ही होगा।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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