asd महंगाई उद्योगपति और व्यापारी ही नहीं पटरी और ठेलों पर सब्जी फल बेचने वाले भी बढ़ाने में कर रहे हैं योगदान, कहीं कहीं 30 रूपये की चीज 60 रूपये में भी इनके द्वारा बेची जा रही है

महंगाई उद्योगपति और व्यापारी ही नहीं पटरी और ठेलों पर सब्जी फल बेचने वाले भी बढ़ाने में कर रहे हैं योगदान, कहीं कहीं 30 रूपये की चीज 60 रूपये में भी इनके द्वारा बेची जा रही है

0

बढ़ती महंगाई और आर्थिक अभाव के चलते भोजन की थाली से कई प्रिय खा़द्य पदार्थ गायब होते जा रहे हैं और इसे लेकर दुनियाभर में चर्चा और महंगाई कम करने पर विचार हो रहा है। आज भी मीडिया में कई जगह इससे संबंध खबरें पढ़ने सुनने को मिली।
जब भी महंगाई या किसी खा़द्य पदार्थ या वस्तु का अभाव होता है तो जिम्मेदार और नागरिक भी जो गहराई को नहीं जानते वो इसके लिए उद्योगपतियों और व्यापारियों को दोष देने का मौका नहीं छोड़ते। मैं यह नहीं कहता कि जमा खोरी और महंगाई के लिए इनका कोई योगदान नहीं होगा मगर पिछले पांच दशक में जितना देखा उसके अनुसार सड़क किनारे दुकान चलाने वाले और ठेला लगाकर सामान बेचने वाले बड़े उद्योगपतियों और व्यापारियों से ज्यादा महंगाई करने और कमाई करने में अग्रणी भूमिका निभा रहे है। अब यह लाइन पढ़कर कुछ लोग मुझे गरीब विरोधी भी कह सकते हैं। मगर एक मामले में अदालत ने कहा था कि अगर कोई गरीब है तो उसे कानून तोड़ने का अधिकार प्राप्त नहीं हो जाता है। रोजमर्रा की काम आने वाली वस्तु के दाम इनके संचालक तय करते हैं और जहां तक बताया जाता है कोई चीज दस रूपये में आती है तो यह बीस रूपये और जो चीज कम मिलती है उसे तीस की भी बताते हैं और मोलभाव करने पर 15 में भी दे देते हैं ऐसे में दस रूपये पर पांच की कमाई करना इनका जन्मसिद्ध अधिकार होता जा रहा है। मैं यह तो नहीं कहता कि हर व्यक्ति ऐसा कर रहा है। अगर आलू एक बार 50 रूपये हो गए तो ठेले वाला उसे हफतों तक 50 रूपये ही बेचता रहता है। ऐसा ही हाल फलवालों का है। त्योहारों पर जो फल महंगे होते हैं वो बाद भी उसी दाम पर बेचे जाते है। इसके छोटे उदाहरण के रूप में हम ठेले पर बिकने वाले सिंगाड़ों और नारियल पानी को देख सकते हैं। इनका नेटवर्क कितना मजबूत है यह नारियल पानी बेचने वालों की कार्यप्रणाली से पता चलता है। आप शहर के एक कोने से दूसरे कोने तक इनके दाम एक ही सुनने को मिलेंगे। एक एक नारियल पानी पर 70 रूपये का बेचने पर 35 रूपये तक कमाते हैं। अब हम सिंगाड़े की बात करें तो बाजार में कोई 60 बताएगा तो कोई 50 लेकिन कई 40 में भी दे देंगे। ऐसा तो नहीं है कि 40 वाला पैसे नहीं कमा रहाा होगा। मगर अनुमान लगाए तो एक किलो सिंगाड़े पर 30 रूपये यानि सौ रूपये लगाकर 70-80 तक की कमाई की जाती है। इस महंगाई का असर सभी पर पड़ता है। मगर इस वर्ग से जुड़े लोग उनका ही उत्पीड़न करने में नहीं चूकता है। मेरा मानना है कि खाद्य मंत्रालय के अधिकारियों प्रदेशों के जनप्रतिनिधियों व अफसरों को जब महंगाई के खिलाफ कोई अभियान चलाए तो सड़क के किनारे बिकने वाले फल सब्जी के थोक मंडियों में दाम पता कर सर्वे कराएं और जो बेहिसाब मुनाफाखोरी इनके द्वारा की जा रही है उसे कम कराया जाए।
प्रधानमंत्री जी देशवासियों को सस्ती खाद्य सामग्री उपलबध कराने की नीति के तहत उद्योगपतियों और व्यापारियों पर भी कार्रवाई हो लेकिन ठेले और पटरी वालों को निर्देश दें कि वह रेट लिस्ट लगाए जिससे पता चले कि महंगाई बढ़ाने में वह योगदान देकर सरकार की बदनामी का कारण बन रहा है। विश्वास के साथ कह सकता हूं कि मजदूर अपने बच्चों के लिए खाद्य सामग्री ले जा सकता है।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

Share.

Leave A Reply

sgmwin daftar slot gacor sgmwin sgmwin sgm234 sgm188 login sgm188 login sgm188 asia680 slot bet 200 asia680 asia680 sgm234 login sgm234 sgmwin sgmwin sgmwin sgmwin asia680 sgmwin sgmwin sgmwin asia680 sgmwin sgmwin sgmwin sgmwin sgmwin sgmwin sgm234 sgmwin sgmwin sgmwin sgmwin sgmwin ASIA680 ASIA680