पर्यावरण प्रदूषण और इससे उत्पन्न खतरों के नाम पर हर तरीके से इस बार युद्धस्तर पर प्रचार किए गए कि इसमें कैसे कमी लाई जा सके। एनजीटी ने भी पूरे प्रयास किए। सरकार और पुलिस प्रशासन भी पीछे नहीं रहे तो पुलिस ने छापेमारी के नाम पर खूब सुर्खियां बटोरी और जैसे ही गत रात दीपावली शुरू हुई और पटाखे छोड़ना और धमाके होना शुरू हुए तो कह कोई कुछ भी ले। पूर्व से आतिशबाजी कहीं कम हुई हो ऐसा नहीं लगा। सवाल यह उठता है कि पुलिस के दावे कहां गए। एक सज्जन की यह बात सही लगती है कि चौकसी के मुकाबले माल कमाने की भावना ज्यादा पावरफुल साबित हुई क्येांकि जो आतिशबाजी हुई वह जरूर कहीं ना कहीं बिकी ही होगी। पटाखों की बिक्री रोकने और चोरी छिपे पटाखे बेचने के नाम पर इन दोनों की आमदनी बढ़ गई है। पुलिस की चौकसी धरी रह गई और आतिशबाजी के धमाकों से प्रदूषण फैलने में कोई कमी नहीं रही। कुछ साल पहले ग्रीन पटाखों की बिक्री की बात चली थी मगर उनकी उपलब्धता की खबर इस बार नहीं मिली। यह बात साफ हो गई कि पुलिस प्रशासन जिन लोगों को बुलाकर इस बारे में राय लेता है और समाज में जिस काम को रोकने का जिम्मा इन्हें देती है वो जयादातर इन मामलों में खूब प्रचलन में रहते है। जिससे यह बात साबित होती है कि यह मुफत के सलाहकार चाटुकार सिर्फ दिखाने के हैं काम के नहीं वरना हर साल जो मौसम का मिजाज बदल रहा है इस साल जो भारतीयों ने ज्यादा समय तक गर्मी का सामना किया वैसा नहीं होता शायद इसीलिए 23-24 में गर्मी ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए।
लैंसेट काउंटडाउन की रिपोर्ट के अनुसार हर देश में लोगों को तेजी से बदलती जलवायु की वजह से स्वास्थ्य और अस्तित्व के लिहाज से रिकॉर्ड तोड़ खतरों का सामना करना पड़ रहा है। खासकर भीषण गर्मी स्वास्थ्य के लिए गंभीर चुनौती पैदा कर रही है। भारत में लोगों को पिछले साल रिकार्ड 2400 घंटों यानी करीब सौ दिन की गर्मी का सामना करना पड़ा। साल 2023 में जलवायु परिवर्तन के कारण लोगों को 50 दिन तक ऐसे रिकॉर्ड उच्च तापमान सहन करना पड़ा जो इंसान की सेहत के लिए खतरनाक है। लेकिन भारत में स्थिति इस मामले में शायद दोगुनी दर्ज की गई है। दूसरे, वैश्विक भूमि क्षेत्र का 48 हिस्सा कम से कम एक महीने तक भीषण सूखे से प्रभावित रहा। यह 1951 के बाद दूसरा उच्चतम स्तर रहा। रिपोर्ट के अनुसार 1981-2010 के बाद से सूखे और लू की घटनाओं में बढ़ोत्तरी की वजह से साल 2022 में 124 देशों में 15.1 करोड़ से ज्यादा लोगों को मध्यम या गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा। यह अब तक का सर्वोच्च स्तर है। बदलती जलवायु के कारण डेंगू, मलेरिया, वेस्ट नाइल वायरस और वाइब्रियोसिस जैसी घातक संक्रामक बीमारियों के फैलने का खतरा बढ़ रहा है, जिससे उन स्थानों पर भी लोगों के संक्रमित होने का खतरा बढ़ रहा है जो पहले इनसे अछूते थे।
कृषि और निर्माण क्षेत्र से जुड़े श्रमिक सबसे ज्यादा प्रभावित हुए गर्मी के संपर्क में आने से श्रमिकों की क्षमता में उल्लेखनीय कमी आने से आर्थिक प्रभाव भी पड़ता है। साल 2023 में गर्मी के कारण काम करने के संभावित 181 अरब घंटे नष्ट हो गए (संकेतक 1.1.3)। इसकी वजह से 141 अरब डॉलर से ज्यादा की आमदनी का नुकसान हुआ। इससे कृषि और निर्माण क्षेत्र से जुड़े श्रमिक सबसे ज्यादा प्रभावित हुए।
इस खबर को पढ़कर इससे होने वाले नुकसान को देखकर यह लगता है कि अगर इस बारे में लिए गए निर्णय साम दाम दंड भेद की नीति अपनाकर लागू नहीं किए तो बढ़ता प्रदूषण नागरिकों की आर्थिक परेशानी और स्वास्थ्य परेशानी का मुख्य कारण तो बनेगा ही इससे कई अन्य नुकसान इंसान और जानवरों को होगे खेती पर भी प्रभाव पड़ने से इनकार नहीं किया जा सकता। इसलिए जो नियम बनाए जाए उन्हें लागू कराने की पूरी व्यवस्था हो और अफसर इस काम में सफल ना हो उसे बिना किसी विचार के कार्यमुक्त करने की नीति पर काम हो।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
जाड़ा गर्मी या हो बरसात मौसम का बिगड़ रहा है मिजाज! पुलिस की निगरानी हुई फेल, व्यापारियों ने पटाखे बेच खूब माल कमाया और प्रदूषण फैलाया
0
Share.