वर्ष के बहुसंख्यकों सहित अपने तरीके से सभी के द्वारा मनाए जाने वाले बड़े त्योहारों में से एक दीपावली दशहरा और होली आदि पर अपने अपने घरों से दूसरे प्रदेशों में जाकर काम करने वाले लोगों को त्योहारों पर उनके घर परिवार तक पहुंचाने हेतु केंद्र व प्रदेश की सरकारें बसों रेलवे के साथ साथ हवाई यात्रा को सुगम बनाने के लिए भरपूर प्रयास किए जाते हैं। लेकिन उसके बावजूद भी हवाई यात्रा महंगी और बस का टिकट आसानी से दिलाने व ट्रेन टिकट आरक्षण प्राप्त करने में आम आदमी को आर्थिक नुकसान के साथ साथ मानसिक कष्ट भी उठाना पड़ रहा है। बताते चलें कि अभी त्योहारों के समय रेल यात्रा कर अपने घरों को जाने वाले सिर्फ बिहार झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के यात्रियों की संख्या लगभग एक करोड़ प्रतिदिन बताई जाती है। जिनमें से 23 लाख यात्री आरक्षित बोगियों में और बाकी सामान्य बोगियों में जा रहे हैं।
वर्तमान समय में लगभग सभी प्रदेशों में बहुत से रोजगार देने वालों उद्योगों का अभाव है इसलिए उनमें काम करने वाले लोगों को मजबूरीवश दूसरे प्रदेशों में जाना पड़ता है और वो किस स्थिति में वहां रहते हैं इसका बखान शब्दों में किया जाना मुश्किल है। इसे मुक्त भोगी ही बता सकते हैं। इस कारण से यात्रियों की संख्या हर साल बढ़ती ही जा रही है। मैं यह तो नहीं कहता कि हमारी सरकार यात्रियों के हिसाब से इंतजाम नहीं करती लेकिन यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि संख्या के हिसाब से व्यवस्था हर साल कम पड़ती है। तो आखिर वो क्या कारण है कि सरकार इसके हिसाब से अनुमान लगाकर हर साल उससे दस लाख यात्रियों के ज्यादा जाने की व्यवस्था क्यों नहीं कर रही। ये तो वही जान सकती है। लेकिन अपने घर पहुंचने की जल्दी और अपनों से मिलने की लालसा के चलते कुछ यात्री टेªन के टायलेट में बैठकर भी यात्रा करने और कष्ट भुगतने के लिए तैयार रहते हैं। इस साल से रेलवे ने यात्रा को सुगम बनाने के लिए टायलेट में सफर करने से रोकने के लिए कुछ नियम बना दिए हैं। कि जब तक टायलेट में कोई भी व्यक्ति होगा गाड़ी नहीं चलेगी। पहले आरपीएफ के जवान टायलेट को खाली कराएंगे बाद में टेªन रवाना होगी। दिल्ली के बड़े स्टेशनों पर रेलवे द्वारा अनावश्यक भीड़ रोकने के नाम पर यात्रियों को पहले ही रोका जाएगा और टेªन आने पर जितने यात्री जा सकते हैं उन्हें ही आगे बढ़ने दिया जाएगा। अगर ध्यान से सोचे तो पहली नजर में यह लगता है कि नरक समान माहौल में यात्रा करने और उससे होने वाली परेशानियों से बचाने के लिए यह उपाय है। भीड़ को रोकने की अच्छी व्यवस्था हो सकती है मगर रेलमंत्री जी नियम बनाने वाले अधिकारियों जो फर्स्ट और सेकेंडर एसी में सफर करते हैं उन्हें त्योहार के मौके पर सामान्य यात्रियों की भांति यात्रा करने के लिए तैयार कीजिए तो पता चलेगा कि आपकी यह व्यवस्था आम नागरिकों के लिए कितनी परेशानी का कारण बन सकती है। सरकार द्वारा जो कदम उठाए गए हैं वो कम तो नहीं है। लेकिन मुझे लगता है कि त्योहारों के मौके पर एक तो हर रूट पर देशभर में 24 घंटे सरकारी बसों का आवागमन तेज किया जाए। और ट्रेनों की संख्या भी बढ़ाई जाए। 60 दिन पहले रेल टिकट बुकिंग की जो व्यवस्था की गई है वो अच्छी है। क्यांेकि इससे यात्रियों की संख्या का अनुमान लगाना आसान होगा। मगर पैसा देकर यात्रा करने वालों के लिए स्वच्छ माहौल में वो आ जा सके इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर यात्रियों के आवागमन और किस त्योहार पर ज्यादा यात्री जाते है किस पर कम उसी हिसाब से टेªनों की संख्या बढ़ाई जाए क्योंकि टायलेट में बैठकर कोई भी अपनी मर्जी से यात्रा नहीं करना चाहता।
मैं खुद कई बार आरक्षण ना हो पाने और आसानी से जगह ना मिलने के चलते त्योहार तो फिर भी भावनाओं से और अपनों से मिलने की इच्छा से जुड़ा होता है जो कुछ भी करने को मजबूर करता है लेकिन मैं और मेरे जैसे बहुत लोग अपनी कार्य की महत्ता को ध्यान में रखते रेल कोच के दमघोटू वातावरण में टायलेट के बाहर खड़े होकर यात्रा कर चुका हूं इसलिए मुझे पता है कि किस समय कैसी मुसीबत में जाने के लिए ऐसा करना पड़ता है। इससे सबको बचाने हेतु रेलमंत्री जी कभी आप भी साधारण यात्री की तरह बिना अफसरों को बताए यात्रा करें तो कई बातों का आपको आसानी से ज्ञान हो सकता है जिनके बारे में आम आदमी के अलावा कोई नहीं जानता।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
रेलमंत्री जी टायलेट में बैठकर कोई भी यात्रा नहीं करना चाहता, सरकार ऐसे लोगों की मजबूरी को समझे और आवागमन सुगम बनाएं
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