आर्य समाजी हो या सनातनधर्मी बहुसंख्यकों के साथ साथ अब अन्य वर्गों के लोग भी बड़ी श्रद्धा और चाव से भंडारे और मंदिरों में प्रसाद ग्रहण करते है और कुलमिलाकर यह कहा जा सकता है कि देश के ज्यादातर नागरिक जब भी कहीं खाद्यय सामग्री का वितरण हो रहा होता है तो कहीं श्रद्धाभाव से तो आवश्यकता के चलते प्रसाद जरूर लेते है। और उसे खाते भी चाव से है। ऐसे में आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री चन्द्राबाबू नायडू का यह कथन अत्यंत महत्वपूर्ण है कि तिरूपति मंदिर के लड्डू प्रसाद में किया जा रहा है जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल।
इस आरोप के पीछे जो भी बात रही हो लेकिन फिलहाल यह मुद्दा मानवीय संवेदनाओं आस्था और धार्मिक भावनाओं से तो जुड़ा हुआ है अगर यह बात सही है तो शाकाहारी लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ भी इसे कह सकते है। मेरा मानना है कि इस मुद्दे को सिर्फ आरोंपों के रूप में न लेकर केन्द्र व आंध्र प्रदेश की सरकार को इस संदर्भ में जानकार ईमानदार प्रवृत्ति के कुछ लोगों की समिति बनाकर गहन जांच कराई जानी चाहिए। और अगर इसमें जरासी भी सत्यता मिलती है तो मंदिर समिति के जिम्मेदार पदाधिकारियों को तुरंत वहां से हटाते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए क्योंकि यह मुद्दा अत्यंत महत्वपूर्ण है और जब तिरूपति जी के मंदिर में ऐसे आरोप लग सकते है जिनमें अगर जरासी भी सत्यता है तो उसे गंभीर मानते हुए देश के सभी छोटे बड़े मंदिरों में चढ़ाये जाने वाले प्रसाद और वितरित किये जाने वाले भोजन व भंडारों के प्रसाद की व्यापक जांच के लिए मंदिर समितियों के पदाधिकारियों के साथ ही हर जनपद के जिलाधिकारी के माध्यम से कराई जाए कार्रवाई। लेकिन कुछ भी हो जनता की धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ करने वाले आरोप प्रत्यारोप को विवाद में फंसाकर पहले सर्वप्रथम कार्रवाई की जाए। और तिरूपति मंदिर के लड्डू बनाने व बनवाने वालों को तुरंत ही हटा देना चाहिए।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
तिरूपति मंदिर के प्रसाद के लड्डूओं में जानवरों की चर्बी के इस्तेमाल के आरोपों पर तुरंत हो कार्रवाई
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