लखनऊ 01 फरवरी। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की ओर से शुक्रवार को निराला सभागार में आयोजित समारोह में प्रदेश के नौ रचनाकारों को बाल साहित्य सम्मान से नवाजा गया। संस्थान के निदेशक राज बहादुर ने इन्हें 51-51 हजार रुपये की पुरस्कार राशि, प्रशस्ति पत्र व स्मृति चिह्न दिए। उन्होंने कहा कि बाल साहित्य की रचना बहुत कठिन कार्य है। जब कोई रचनाकार बाल साहित्य के लिए लेखनी चलाता है, तब उसे अपने बचपन में लौटना पड़ता है।
इस अवसर पर बाल साहित्य सम्मान से सम्मानित साहित्यकार डॉ0 करुणा पाण्डे,डॉ0 आर0 पी0 सारस्वत, डॉ0 मोहम्मद अरशद खान, श्री दिलीप शर्मा, श्री नरेन्द्र निर्मल, श्री बलराम अग्रवाल, श्री देवी प्रसाद गौड़, डॉ0 दीपक कोहली, श्री अनिल कुमार ’निलय’ का स्वागत स्मृति चिह्न भेंट कर श्री राज बहादुर, निदेशक, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा किया गया।
लखनऊ की डॉ. करुणा पांडेय को सुभद्रा कुमारी चौहान महिला बाल साहित्य सम्मान और डॉ. दीपक कोहली को जगपति चतुर्वेदी बाल विज्ञान लेखन सम्मान दिया गया।
सहारनपुर के डॉ. आरपी सारस्वत को सोहनलाल द्विवेदी बाल कविता सम्मान, शाहजहांपुर के मो. अरशद खान को अमृत लाल नागर बाल कथा सम्मान, अलीगढ़ के दिलीप शर्मा को शिक्षार्थी बाल चित्रकला सम्मान और गौतमबुद्धनगर के नरेंद्र निर्मल को लल्ली प्रसाद पांडेय बाल साहित्य पत्रकारिता सम्मान दिया गया।
बलराम अग्रवाल को डॉ. रामकुमार वर्मा बाल नाटक सम्मान, मथुरा के देवी प्रसाद गौड़ को कृष्ण विनायक फड़के बाल साहित्य समीक्षा सम्मान और प्रतापगढ़ के अनिल कुमार निलय को उमाकांत मालवीय युवा बाल साहित्य सम्मान दिया गया। संचालन संस्थान की प्रधान संपादक डॉ. अमिता दुबे ने किया।
पुरस्कार पाने वालों में शामिल डॉ. करुणा पांडेय ने कहा कि जिन बच्चों के लिए बाल साहित्य लिखा जा रहा है, वह दरअसल उन तक पहुंच ही नहीं पा रहा है। इसके लिए बच्चों के मनोविज्ञान को समझना होगा। अच्छी किताबें देकर मोबाइल की लत से छुटकारा दिलाया जा सकता है। बच्चों को संस्कारवान बनाना है तो बाल साहित्य को समृद्ध करना होगा।
नरेंद्र निर्मल ने कहा, बच्चों को पढ़ने के लिए व उन्हें प्रेरित करने के लिए बच्चों से जुड़ना भी होगा। यह कहना उचित नहीं है कि बच्चों का साहित्य पढ़ा नहीं जा रहा है। बलराम अग्रवाल ने कहा कि माता-पिता संतान को बहुत कुछ दे देते हैं, जो हमें दिखाई नहीं देता। बाल साहित्य बड़ों को भी सीख देता है कि बच्चों को क्या सिखाया जाए। देवी प्रसाद गौड़ ने कहा, आजकल बाल साहित्य बच्चों पर तो लिखा जा रहा है, लेकिन इसे बच्चों के लिए लिखना चाहिए।
डॉ0 दीपक कोहली ने कहा कि बालमन में हमेशा एक प्रश्न आता है ’’क्यों और कैसे’’। बच्चों को उनके प्रश्नों का उत्तर उनकी भाषा में ही दिया जाना चाहिए। बच्चों के प्रश्न ही बाल-विज्ञान को लिखने के लिए प्रेरणा प्रदान करते हैं। श्री अनिल कुमार ’निलय’ ने कहा कि साहित्य हो या साहित्यकार ने अपने समय में अपने दायित्वों का निर्वहन किया है। न ही हिन्द संकट में रहा है, न कभी हिन्दी संकट में रही है। हमें आशावान बने रहना है।