नई दिल्ली 15 जनवरी। डॉ. सरोज चूड़ामणि गोपाल का नाम उन महिलाओं में लिया जाता है, जिन्होंने करियर में आगे बढ़ने के लिए कई मिथों को तोड़ा. उन्होंने डॉक्टर बनने के लिए परिवार की रूढ़िवादी सोच बदली. अब 79 वर्ष की उम्र में भी उनके कदमों में कोई ठहराव नहीं आया है.
जिस उम्र में लोग रिटायर होकर आराम फरमा रहे होते हैं, उस उम्र में डॉ. सरोज चूड़ामणि गोपाल एक नए सफर पर चल पड़ी हैं. उन्होंने आईआईटी कानपुर के पीएचडी प्रोग्राम में एडमिशन लिया है. पद्मश्री डॉ. सरोज चूड़ामणि गोपाल का यह नया सफर असंख्य महिलाओं के लिए प्रेरणा है. Indian Express की रिपोर्ट के मुताबिक, सरोज चूड़ामणि गोपाल का डॉक्टर बनने का सफर आसान नहीं था.
डॉ. सरोज चूड़ामणि गोपाल विलक्षण प्रतिभाओं की धनी महिला हैं. वह आगरा कॉलेज में सामान्य सर्जरी की पहली महिला पोस्ट ग्रेजुएट स्टूडेंट थीं, फिर उन्हें बाल चिकित्सा सर्जरी में सुपरस्पेशलिटी हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला के तौर पर पहचान मिली. उसके बाद वह लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी की पहली महिला कुलपति भी बनीं.
79 साल की उम्र में डॉ. सरोज चूड़ामणि गोपाल ने अपनी पढ़ाई फिर से शुरू कर दी है. उन्होंने आईआईटी कानपुर में पीएचडी में एडमिशन लिया है. वह अपने शोध को अब आईआईटी कानपुर के जैविक विज्ञान और बायोइंजीनियरिंग विभाग में जारी करेंगी.
डॉ. सरोज चूड़ामणि गोपाल ने अपने शानदार करियर में बाल चिकित्सा सर्जरी में नई तकनीकें विकसित की हैं. साथ ही गरीबों के लिए इलाज को सुलभ बनाने के लिए कम खर्च वाले ट्रीटमेंट भी तैयार किए हैं. उन्होंने हाइड्रोसेफेलस के लिए नया स्टेंट और बच्चों के लिए ह्यूमिडिफायर भी सस्ते दामों में उपलब्ध करवाया है. उन्हें पद्मश्री के साथ ही डॉ. बीसी रॉय पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है.
डॉ. सरोज ने जब घर पर मेडिकल की पढ़ाई करने की इच्छा जताई तो उनके घरवालों ने साफ मना कर दिया था. फिर 5 दिनों तक भूख हड़ताल पर रहने के बाद उनके घरवाले इस शर्त पर मान गए कि वह आगरा के सरोजिनी नायडू मेडिकल कॉलेज से ही पढ़ाई करें. इसके बाद वह जनरल सर्जरी में पोस्ट ग्रेजुएशन करना चाहती थीं, जिसके लिए भी उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा.
उन्होंने आगरा कॉलेज और एम्स, दिल्ली से डॉक्टरी की पढ़ाई की है. डॉ. सरोज ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के चिकित्सा विभाग में बतौर लेक्चरर, मेडिकल सुपरिंटेंडेंट और डीन अपनी सेवाएं दी हैं.