मुजफ्फरनगर 08 फरवरी। वर्ष 2013 में हुए सांप्रदायिक दंगे के एक मुकदमे में कोर्ट ने 11 साल बाद फैसला सुनाते हुए सभी छह आरोपितों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया। दंगे के दौरान छह लोगों को नामजद करते हुए सैकड़ों अज्ञात लोगों पर सांप्रदायिक नारे लगाते हुए घर पर हमला बोलकर तोड़फोड़, लूट और आगजनी का आरोप लगाया था।
27 अगस्त 2013 को गांव कवाल में तीन हत्याओं के बाद जनपद में सांप्रदायिक तनाव फैल गया था। सात सितंबर को गांव नंगला मंदौड़ में हुई पंचायत के बाद जनपद में दंगा फैल गया था। अभियोजन के अनुसार फुगाना थाना क्षेत्र के गांव गाना तोड़फोड़ और मकान में आगजनी की गई थी। इस मामले में केंद्रीय सुरक्षा बल में कांस्टेबल के पद पर तैनात रहे आबिद पुत्र शाबाद ने तीन अक्टूबर 2013 को मुकदमा दर्ज कराया था। आबिद ने बताया था कि उसकी पोस्टिंग जिले से बाहर है। वह घर पर आया तो उसे उसके भाई मोबीन ने बताया कि आठ सितंबर 2013 को क्षेत्र में दंगा भड़क उठा था।
आरोप था कि सांप्रदायिक नारे लगाते हुए राकी, नितिन, कपिल, विकास, सुमित और योगेश ने सैकड़ों लोगों की भीड़ के साथ उसके घर पर हमला बोल दिया था। आरोप था कि हमलावरों ने घर में रखे 50 हजार रुपये लूट लिए थे, घर का सामान तोड़ दिया था और आग लगा दी। बचाव पक्ष के अधिवक्ता सौराज सिंह मलिक ने बताया कि मामले की विवेचना एसआइटी ने कर 2014 में कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की थी। शासन से अनुमति मिलने पर सांप्रदायिक विद्वेष से जुड़े मामले की विवेचना कर एसआइटी ने 2017 में चार्जशीट लगाई थी।
एडीजे- छह कोर्ट में मामले की सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान मौके के गवाह मोबीन और शोबीन को पक्षद्रोही घोषित किया गया। कोर्ट ने सभी छह आरोपितों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया । दंगे के केवल तीन मुकदमों में हुई है सजा : 2013 में हुए सांप्रदायिक दंगे के बाद 510 मुकदमे दर्ज हुए। 175 मामलों में एसआइटी ने कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की। झूठे पाए जाने पर 170 मुकदमे खारिज किए गए। करीब 11 वर्ष के दौरान करीब 100 से अधिक मुकदमों में आए फैसले में 1,100 से अधिक आरोपित बरी हो चुके हैं, जबकि केवल तीन मुकदमों में ही दोषियों को सजा सुनाई गई।