asd गुजरात में मिले विशालकाय सर्प की रीढ़ की हड्डी के 4.7 करोड़ वर्ष पुराने अवशेष

गुजरात में मिले विशालकाय सर्प की रीढ़ की हड्डी के 4.7 करोड़ वर्ष पुराने अवशेष

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नई दिल्ली 19 अप्रैल। समुद्र मंथन की पौराणिक गाथाओं में मंदराचल पर्वत पर लपेटे गए वासुकि नाग के अस्तित्व को प्रमाणित करने के लिए जरूरी वैज्ञानिक आधार मिल गया है। आइआइटी रुड़की के एक अहम शोध में गुजरात के कच्छ स्थित खदान में एक विशालकाय सर्प की रीढ़ की हड्डी के अवशेष मिले हैं।

ये अवशेष 4.7 करोड़ वर्ष पुराने हैं। जिस सर्प की हड्डी के अवशेष मिले हैं, विज्ञानियों ने उसे वासुकि इंडिकस नाम दिया है। विज्ञानियों का कहना है कि यह अवशेष धरती पर अस्तित्व में रहे विशालतम सर्प के हो सकते हैं। कच्छ स्थित पनंध्रो लिग्नाइट खदान में विज्ञानियों ने 27 अवशेष खोजे हैं, जो कि सर्प की रीढ़ की हड्डी (वर्टिब्रा) के हिस्से हैं।
इनमें से कुछ उसी स्थिति में हैं, जैसे जीवित अवस्था में सर्प विचरण के समय रहे होंगे। विज्ञानियों के अनुसार, अगर आज वासुकि का अस्तित्व होता तो वह आज के बड़े अजगर की तरह दिखता और जहरीला नहीं होता। खदान कच्छ के पनंध्रो क्षेत्र में स्थित है और यहां से कोयले की निम्ननम गुणवत्ता वाला कोयला (लिग्नाइट) निकाला जाता है। साइंटिफिक रिपो‌र्ट्स जर्नल में यह शोध प्रकाशित हुआ है।

शोध के मुख्य लेखक और आइआइटी रुड़की के शोधार्थी देबाजीत दत्ता ने बताया कि आकार को देखते हुए कहा जा सकता है कि वासुकि एक धीमा गति से विचरण करने वाला सर्प था, जो एनाकोंडा और अजगर की तरह अपने शिकार को जकड़ कर उसकी जान ले लेता था।
जब धरती का तापमान आज से कहीं अधिक था तब यह सर्प तटीय क्षेत्र के आसपास दलदली भूमि में रहता था। यह सर्प 6.5 करोड़ वर्ष पूर्व डायनासोर का अस्तित्व खत्म होने के बाद आरंभ हुए सेनोजोइक युग में रहता था।

वासुकि नाग की रीढ़ की हड्डी का सबसे बड़ा हिस्सा साढ़े चार इंच का पाया गया है और विज्ञानियों के अनुसार विशाल सर्प की बेलनाकार शारीरिक संरचना की गोलाई करीब 17 इंच रही होगी।
इस खोज में सर्प का सिर नहीं मिला है। दत्ता का कहना है कि वासुकि एक विशाल जीव रहा होगा, जो अपने सिर को किसी ऊंचे स्थान पर टिकाने के बाद शेष शरीर को चारों ओर लपेट लेता रहा होगा। फिर यह दलदली भूमि में किसी अंतहीन ट्रेन की तरह विचरण करता रहा होगा।

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