पूजा व धार्मिक स्थलों के संदर्भ में दिल्ली और इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा दिए गए अलग अलग दो फैसलों पर सरकारों ने अमल किया तो सभी पवित्र धार्मिक स्थलों की गरिमा और ज्यादा बढ़ेगी क्योंकि यहां रहने वाले धार्मिक कार्य संपन्न कराने वाले लोगों को धार्मिक परिसर छोड़कर अन्य स्थानों पर रहना होगा। इसी के साथ ही खबर पढ़ने से जितना पता चलता है उससे यह लगता है कि अब सरकारों ने कोर्ट के आदेशों का पालन किया तो इनकी जमीनों पर कब्जे समाप्त होंगे। अगर दिल्ली के जापतागंज के बगल में स्थित धार्मिक स्थल के संदर्भ में जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एमआर शाह व सीटी रविकुमार की पीठ द्वारा कोर्ट परिसर में स्थित धार्मिक स्थल को हटाने के आदेश का पालन हो गया तो कई प्रकार के मनमुटाव और बैर भाव समाप्त तो होगा ही इनको लेकर उत्पन्न होने वाली हिंसक घटनाएं भी समाप्त हो सकती है तथा ऐसे कारणों से जो जगह जगह जाम लगते हैं उसकी संभावनाएं भी समाप्त हो सकती है क्योंकि जब इन दोनों मामलों में हुए निर्णय का पालन हो जाएगा तो अन्य को लेकर भी कोई ना कोई कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। और ऐसा होने पर इन दो प्रकरणों की तरह समयानुकुल जरूरत के अनुसार फैसले लिए जा सकते हैं। और वो आम आदमी के हित में सौंदर्यीकरण और विकास में भूमिका निभाएंगे।
मेरा मानना है कि इन दोनों मामलों की समीक्षा कर किसी सूचना का अधिकार या जनहित याचिका दायर कर्ता को नियमविरूद्ध सड़कों के किनारे या अवैध निर्माणों को बचाने अथवा मोटी आमदनी के लिए सरकारी जमीनों पर अथवा सार्वजनिक स्थानों पर कब्जा कर धार्मिक स्थल और साथ में दुकानें बनाने वालों की प्रवृति पर रोक लगेगी। सड़कों के बीचो बीच या किनारे बने अवैध धार्मिक स्थल हट भी सकते हैं।
स्मरण रहे कि शहर गांव देहातों में होने वाले धार्मिक और सार्वजनिक कार्यक्रमों हेतु जगह जगह सरकार या ग्राम पंचायत अथवा दानवीरों द्वारा अपनी बेशकीमती जमीनें समाज के मध्यम और गरीब व्यक्ति के परिवारों में होने वाले आयोजनों के लिए छोड़ने के साथ ही कुछ ने धर्मशालाएं सामुदायिक केंद्र चौपाल बना दी गई थी जिन पर उनके वंशजों ने कब्जे करने और उन्हें बेचने का काम शुरू कर दिया। इसके लिए उनके द्वारा विभिन्न प्रकार की मनगढ़ंत बातें भी रखी जाने लगी। और विरोध किसी के स्तर पर हुआ नहीं इसलिए धर्मशालाएं व सार्वजनिक स्थल धीरे धीरे दुकानों व रिहायशी में बदलते जा रहे हैं और कहीं तो रईस लोग भी इसमें शामिल हैं। उस दिन का इंतजार है जब कोई इन मुददों को लेकर न्यायालय जाएगा। यइ बात विश्वास से कही जा सकती है कि देर सवेर गरीबों के लिए बनी धर्मशाला और सामुदायिक केंद्र अपने पुराने स्वरूप में लौट सकते हैं। क्योंकि न्यायालय के आदेश और कर्मशील याचिका कर्ता के सक्रिय रहते मुफत का चंदन घिस मेरे नंदन के समान अपने बाप दादाओं की धार्मिक प्रवृति को नजरअंदाज कर कब्जा करने वालों की एक भी नहीं चल पाएगी। जहां तक इलाहाबाद हाईकोर्ट का निर्णय है उससे यह स्पष्ट है कि सार्वजनिक उपासना स्थल पर धार्मिक कार्य संपन्न कराने वाले सेवाकारों को ना तो कब्जे की अनुमति मिल पाएगी और वो वहां रह भी नहीं पाएंगे। इसके लिए अब उन्हें अपने निवास हेतु अन्य जगह तलाश करनी होगी। समाचार पत्रों में इन दो निर्णयों को पढ़कर जो चर्चा जागरूक नागरिकों मे ंसुनने को मिली उससे यह स्पष्ट हो रहा था कि जनता भी चाहती है कि धार्मिक स्थल कब्जा मुक्त और रिहायशी मुक्त होने चाहिए जिससे इन जगहों की पवित्रता बनी रहे।
माता के नवरात्र आने वाले हैं। रामायण और दुर्गा सती के पाठ शुरू होंगे। ऐसे पवित्र दिनों के आने से पूर्व धार्मिक स्थलों के संदर्भ में न्यायालय का यह निर्णय एक शुभ संकेत भी धर्मप्रेमियों के लिए कह सकते हैं।
– रवि कुमार बिश्नोई
संस्थापक – ऑल इंडिया न्यूज पेपर्स एसोसिएशन आईना
राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय समाज सेवी संगठन आरकेबी फांउडेशन के संस्थापक
सम्पादक दैनिक केसर खुशबू टाईम्स
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