व्हाट्सएप ने भारत में 36.77 लाख खातों पर लगाया प्रतिबंध

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नई दिल्ली. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म व्हाट्सएप ने गत दिवस कहा कि उसने दिसंबर में भारत में 36.77 लाख खातों को प्रतिबंधित किया। यह पिछले महीने में प्रतिबंधित किए गए खातों से कुछ कम है। नवंबर में 37.16 लाख खाते प्रतिबंधित किए गए थे।
सूचना प्रौद्योगिकी नियम 2021 के तहत प्रकाशित मासिक रिपोर्ट में व्हाट्सएप ने कहा, एक दिसंबर से 31 दिसंबर, 2022 के बीच भारत में 36.77 लाख खातों पर प्रतिबंध लगाया गया है। इनमें से 13.89 लाख वे खाते भी शामिल हैं जिन्हें यूजर की तरफ से शिकायत करने से पहले ही रोक दिया गया था। पिछले साल प्रभावी हुए सख्त आईटी नियमों में 50 लाख से अधिक यूजर वाले डिजिटल प्लेटफॉर्म को हर महीने अनुपालन रिपोर्ट का प्रकाशन करना होता है। इसमें यह बताना पड़ता है कि उसे कितनी शिकायतें मिली हैं और उसको लेकर उसने क्या कार्रवाई की।

वहीं सुप्रीम कोर्ट ने गत दिवस व्हाट्सएप की प्राइवेसी पॉलिसी को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि व्हाट्सएप मीडिया में प्रचार करे कि लोग उसकी 2021 की प्राइवेसी पॉलिसी को मानने के लिए बाध्य नहीं हैं। शीर्ष अदालत ने व्हाट्सएप को 2021 में सरकार को दी अपनी अंडरटेकिंग का मीडिया में प्रचार करने के लिए पांच अखबारों में विज्ञापन देने का निर्देश दिया है।

न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच-जजों की संविधान पीठ दो छात्रों की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें व्हाट्सएप की फेसबुक और अन्य को यूजर्स का डाटा शेयर करने की नीति को चुनौती दी गई। पीठ ने कहा कि हम सरकार को दिए पत्र में उठाए गए स्टैंड को रिकॉर्ड करते हैं और हम व्हाट्सएप के वकील के निवेदन को रिकॉर्ड करते हैं कि वे पत्र की शर्तों का पालन करेंगे। संविधन पीठ ने मामले की सुनवाई 11 अप्रैल के लिए स्थगित करते हुए कहा कि हम निर्देशित करते हैं कि व्हाट्सएप इस पहलू को दो बार पांच राष्ट्रीय समाचार पत्रों में प्रचार करेगा।

सुप्रीम कोर्ट में 31 जनवरी को भी मामले की सुनवाई हुई थी। तब अदालत ने कहा था कि वह बजट सत्र में डाडाटा संरक्षण विधेयक पेश किए जाने के बाद व्हाट्सएप की उपयोगकर्ताओं का डाटा शेयर करने की नीति को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करेगी। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया था कि संसद के मौजूदा बजट सत्र में डाटा संरक्षण विधेयक पेश किए जाने की संभावना है।

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में निजी कंपनियों के लोगों का पर्सनल डाटा साझा करने का विरोध किया था। सरकार ने डाटा शेयर करने को जीने के अधिकार के खिलाफ बताया था। पर्सनल डेटा संविधान के अनुच्छेद 21 (जीने का अधिकार) के तहत आता है। दूरसंचार कंपनियां या सोशल नेटवर्किंग कंपनियां किसी यूजर का डाटा तीसरे पक्ष के साझा नहीं कर सकती हैं।

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