भारत हो या अन्य कोई देश सबमें विकास की बयार वहां के व्यापार में उन्नति और उद्योगों की प्रगति से ही संभव है। लेकिन इस बात को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता कि आम आदमी को किसी भी प्रकार का कोई नुकसान किसी उद्योग की वजह से हो। वो भी बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। उद्योगपति गौतम अडाणी समूह के द्वारा जिस प्रकार से प्रगति और उन्नति की गई वो हमेशा समाचार पत्र की सुर्खियों और जनता में चर्चा का विषय रही है। पक्ष और विपक्ष की सरकारों ने भी इस कंपनी को खूब बढ़ावा दिया है और इसमे कोई बुराई भी नहीं थी क्योंकि उद्योग देश की आर्थिक नीति की नींव कहे जाते हैं। इससे रोजगार मिलता है। और आम आदमी के जीवन में खुशहाली आती है। इसलिए जब देश के सबसे बड़े उद्योगपति रिलायंस समूह से भी आगे निकल रहे अडाणी समूह ने अपने उद्योगों के पैर पसारे तो यह लगा था कि कुछ अच्छा नौजवानों के लिए होने वाला है मगर हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा जो गंभीर आरोप लगाए गए भले ही उसका जवाब अडाणी ग्रुप द्वारा दे दिया गया हो लेकिन जिस प्रकार से उनकी कंपनियों के शेयर घटने शुरू हुए उससे लगा कि कहीं ना कहीं कुछ ना कुछ लोचा तो हो ही सकता है । इसलिए स्थिति स्पष्ट होनी चाहिए।
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को भारत की स्वतंत्रता और अखंडता पर सुनियोजित हमला अडाणी समूह ने बताते हुए कहा गया है कि अमेकिरी वित्त्ीय शोध फर्म हिंडनबर्ग की रिपोर्ट झूठ के अलावा कुछ नहीं है और इसे इसलिए प्रचारित किया गया जिससे समूह के शेयर की कीमत गिरे और अमेकिरी वित्तीय फर्म को लाभ हो। यह रिपोर्ट किसी विशेष कंपनी पर अवांछित हमला है। भारत की स्वतंत्रता अखंडता और भारतीय संस्थानाअें की गुणवत्ता और उसकी महत्वाकांक्षा पर सुनियोजित हमला है।
हिंडनबर्ग और अडाणी समूह का यह विवाद ऐसा है जो कोई निष्पक्ष शख्सियत तय कर सकती है कि सही क्या गलत क्या है क्योंकि यह मुददा कहीं ना कहीं भारतीय अर्थव्यवस्था और उद्योगों व आम आदमी की भावनाओं से जुड़ा है। अडाणी समूह की बात सही है या हिंडनबर्ग की रिपोर्ट अब यह स्पष्ट जनहित में होना ही चाहिए। मेरा मानना है कि केंद्रीय वित्त मंत्री और उद्योग गृह कानून मंत्रालय को इसमें किसी रिटायर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाकर कम से कम समय में इस पूरे मामले की रिपोर्ट मांगी जाए और इतने यह आए उतने केंद्र सरकार इस मामले में सही स्थिति क्या हो सकती है अपना पक्ष आम आदमी के सामने रखे। जिससे जो अफरा तफरी उत्पन्न हुई है वो शांत हो सके।
वैसे भी हमारी प्रधानमंत्री जी किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार लापरवाही और औद्योगिक प्रगति में बाधा बर्दाश्त न किए जाने का संदेश कई बार दे चुके हैं। ऐसे में जरूरी है कि जहां से भी हो सकता हो अडाणी समूह और हिंडनबर्ग की रिपोर्टो में सही गलत क्या है इससे जनता को हर हाल में अवगत कराया ही जाना चाहिए।
वैसे हिडनबर्ग समूह द्वारा अडाणी समूह के इसे देश की भावना से जोड़ने पर अपना पक्ष भी प्रस्तुत किया गया है। इसलिए भी यह जरूरी हो जाता है कि दूध का दूध और पानी का पानी इस मामले में हो।
– रवि कुमार बिश्नोई
संस्थापक – ऑल इंडिया न्यूज पेपर्स एसोसिएशन आईना
राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय समाज सेवी संगठन आरकेबी फांउडेशन के संस्थापक
सम्पादक दैनिक केसर खुशबू टाईम्स
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