लखनऊ. अवैध निर्माणों का खेल खत्म करने को प्रवर्तन की नई गाईडलाइन तैयार होगी। जिसके तहत प्रवर्तन कार्य देखने वाले सहायक या अवर अभियंताओं की जिम्मेदारी तय की जाएगी। नई गाईडलाइन के मुताबिक अवैध निर्माण रोकने की जिम्मेदारी संभालने वाले अभियंताओं को ट्रांसफर होने पर अपने कार्यकाल में हुए निर्माणों का ब्यौरा देना होगा। इसके लिए एक प्रारूप भी निर्धारित कर दिया गया है। इस व्यवस्था के लागू होने से अब कोई भी अभियंता अपने कार्यकाल में कराए गए अवैध निर्माण के लिए किसी दूसरे को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकेगा।
दरअसल सरकार द्वारा तमाम नियम व प्रावधान बनाने के बाद भी विकास प्राधिकरणों में अवैध निर्माणों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। ऐसे में आवास विभाग ने अवैध निर्माणों पर प्रभावी रोक लगाने के लिए एक प्रवर्तन की नई गाईडलाइन तैयार करा रहा है। नई गाईडलाइन में जोनल स्तर पर तैनात सुपरवाइजर, अवर और सहायक अभियंताओं के साथ ही जोनल अधिकारियों के संबंध में खास तौर से प्रावधान किया जा रहा है। यह भी प्राविधान किया जा रहा है कि स्थानांतरित होने वाले अफसरों को इस बात का भी प्रमाणपत्र देना होगा कि उनके कार्यमुक्त होने के दिन तक उनकेकार्यक्षेत्र में कितनी अवैध कालोनी है। इससे पता चल जाएगा कि किस अधिकारी के कार्यकाल में अवैध निर्माणों की संख्या कितनी बढ़ी है। अधिकारियों द्वारा दिए गए प्रमाण पत्र के अलावा संबंधित अधिकारी के कार्य क्षेत्र का गूगल मैपिंग भी कराई जाए। इसके आधार पर दोषी अधिकारियों को चिन्हित किया जाए।
सूत्रों के मुताबिक जल्द ही नई व्यवस्था को लागू किया जाएगा। इस संबंध में सभी विकास प्राधिकरणों से अवैध निर्माणों की ताजा स्थिति के बारे में जानकारी मांगी गई है। वहीं अवैध कालोनियों पर भी लगाम लगाने की तैयारी है। इसके लिए नई गाईडलाइ तैयार की जा रही है। प्रस्तावित गाईडलाइन में जहां अनधिकृत कालोनियों की संख्या में हो रही बढ़ोत्तरी पर लगाम लगाने का प्रावधान किया जाएगा, वहीं अब तक बन बस चुकी कॉलोनियों में रहने वाले लोगों की व्यवहारिक दिक्कतों को दूर करने की भी व्यवस्था की जाएगी। साथ ही नई अनधिकृत कालोनियां न बने, इसके लिए कट-ऑफ-डेट निर्धारित किया जाएगा। कट-ऑफ-डेट के बाद यदि नई अनधिकृत कालोनी डवलप होगी तो संबंधित अधिकारी के खिलाफ सख्त व दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी। आवास विभाग द्वारा अनधिृत कालोनियों को नियमित करने के संबंध में हाल में ही दिल्ली, महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब व कर्नाटक की नीति का अध्ययन कर तैयार की गई रिपोर्ट को देखने के बाद यह निर्णय लिया गया है।