देवबंद. जमीयत उलमा-ए-हिंद ने दलित मुस्लिम और दलित इसाइयों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इसके साथ ही जमीयत ने अनुच्छेद-341 में धर्म के आधार पर किए गए भेदभाव को भारत के संविधान की भावना के विरुद्ध बताते हुए इसे समाप्त करने का अनुरोध भी कोर्ट से किया है।
जमीयत उलमा-ए-हिंद की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका के संबंध में राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि याचिका में रंगनाथ मिश्रा आयोग, सच्चर कमेटी और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की वर्ष 2008 की रिपोर्ट को सबूत के तौर पर प्रस्तुत किया है, साथ ही इस तथ्य का भी उल्लेख किया है कि इस्लाम एक धर्म के रूप में सभी को समानता की सीख देता है, जो इस्लामी आस्था और सोच का एक अटूट सिद्धांत और मौलिक हिस्सा है। मौलाना मदनी ने कहा कि यह याचिका दायर करने का सही समय था। जमीयत लंबे समय से सत्ता पर आसीन रही सरकारों से मांग करती रही है कि धर्म के आधार पर भेदभाव करने वाला यह कानून समाप्त किया जाए। जिससे मुल्क में किसी को भी उसके अधिकारों से वंचित न किया जा सके।