पीएम आवास योजना वर्तमान समय में केन्द्र व प्रदेश सरकार की सबसे प्राथमिकता पर है। लेकिन यह बड़े ताज्जुब की बात है कि माननीय प्रधानमंत्री जी की हर जरूरतमंद गरीब व्यक्ति को छत उपलब्ध कराने की भावना के तहत शुरू किये गये इस कार्य को लगता है कि शायद कोई भी उतना गंभीरता से नहीं ले रहा है जितना लिया जाना चाहिए। और इससे संबंध अफसर तो किसी प्रकार से इसके तहत होने वाले कार्यों को टालने और असफलता की जिम्मेदारी दूसरे पर डालने का कोई मौका नहीं चूक रहे है।
मानवीय भावना का आदर करते हुए
सही तो यह है कि माननीय प्रधानमंत्री जी की योजना के तहत आवास बनाकर पात्रों को समय से संबंधित विभागों आवास विकास प्राधिकरणों डूडा व अन्य स्थानीय निकायों के द्वारा अपने संसाधनों से बनाकर देने चाहिए थे लेकिन ग्रामीण कहावत सया भये कोतवाल तो डर काहे के समान योजना से संबंध अधिकारियों ने उच्च पदों पर बैठे जनप्रतिनिधियों को शायद यह समझा दिया कि यह जिम्मेदारी कानून बनाकर प्राईवेट कोलोनाईजरों को सौंपी जाए और बाद में ऐसा ही हुआ। यहां तक भी ठीक था कुछ को छोड़कर ज्यादातर रीयल स्टेट से जुड़े लोग सरकार की भावनाओं का आदर करते हुए पीएम आवास बनाने को सहमत भी हो गये। मगर पात्र व्यक्ति को अपने घर की आस में अभी भी इंतजार करना पड़ रहा है आखिर क्यों?
इस संदर्भ में जब खबर पढ़ी कि पीएम आवास न बनाकर देने वाले बिल्डरों के खिलाफ कार्यवाही होगी। तो जो बात खुलकर सामने आई उससे यह स्पष्ट हो रहा है कि बिल्डर ही नहीं इस योजना से संबंध अफसर भी दोषी नहीं है।
समय से अफसर आवंटन भी नहीं करते
क्योंकि किसी प्रकार से बिल्डर महंगी जमीन पर इधर उधर से धन जुटाकर मकान बना भी देता है तो उन्हें अफसरों द्वारा समय से नियमानुसार आवंटित नहीं किया जाता। इसके उदाहरण के रूप में मेरठ विकास प्राधिकरण के क्षेत्र में आने वाले बिल्डर इंड्स वैली ग्रुप द्वारा रूड़की रोड़ पर वासूकुंज के नाम से 100 से ज्यादा आवास उच्च क्वालिटी के बनाकर कई साल पहले बनाकर तैयार कर दिये। इसी प्रकार एपेक्स ग्रुप द्वारा परतापुर बाईपास पर स्थित सिल्वर सिटी में काफी पीएम आवास बना दिये गये तो अंसल ने सुशांत सिटी और सुपर टेक बिल्डर द्वारा भी काफी पीएम आवास मिली मौखिक जानकारी अनुसार बना दिये है। और इसकी सूचना भी समय से मेरठ विकास प्राधिकरण के अधिकारियों को उपलब्ध करा दी है जिससे इससे इनका आवंटन किया जा सके। मगर कई कई वर्षों से ये आवास बने हुए है बिल्डर का पैसा अटका पड़ा है। मेरठ विकास प्राधिकरण के अधिकारी सुनने को तैयार नहीं बताये जाते है और बिल्डर सीधे यह मकान बेच नहीं सकता।
कम्पलीट सर्टिफेट नहीं देते
दूसरी तरफ आसानी से सरकारी विभाग बनाये गये मकानों को कम्पलीट सर्टिफेट नही देता और जो सुविधा और सहयोग बिल्डर को दिया जाना चाहिए वो इनके द्वारा नहीं दिया जाता ऐसे में भला सारे बिल्डर जिन पर आर्थिक गुंजाईश नहीं है कि वो आवास बनाकर छोड़ दे वो कैसे पीएम आवास बनाने की ओर माननीय प्रधानमंत्री जी आदि की भावनाओं का आदर करते हुए अपने कदम बढ़ाये।
आसानी से बैंक लोन नहीं देते
ऐसी ही और अन्य परेशानियां बिल्डर के समक्ष खड़ी है इस योजना में जो बताया गया आसानी से बैंक लोन देने को तैयार नहीं होते। और सुविधा मिलने की कोई उम्मीद न होने के चलते कहीं से भी कोई सहयोगर बिल्डर को नहीं मिल पाता ऐसे में पीएम और सीएम साहब कोई भी आर्थिक नुकसान उठाने के लिए कदम कैसे बढ़ाये इन तथ्यों को देखकर नागरिकों की यह बात सही लगती है कि पीएम आवास बनने की देरी के लिए बिल्डरों के नहीं संबंधित विभागों प्राधिकरण डूडा आवास विकास और अन्य स्थानीय निकायों के अफसरों के खिलाफ हो कार्यवाही। रही बात पीएम आवास बनने और जरूरतमंदोें को मिलने की तो यह काम जितनी जल्दी हो सके उतना अच्छा है इसके लिए बिल्डरों को सहयोग और माहौल तथा सुविधाऐं उपलब्ध न कराने वालों की लगाम कसी जाए। (प्रतिनिधि)