वृंदावन 21 जनवरी। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने गत दिवस कहा कि अंग्रेज हमारी शिक्षा नीति लेकर गए, तो वहां 17 से 70 फीसद साक्षर हो गए। हमने उनकी शिक्षा नीति अपनाई जो खोखली साबित हुई। आज रोजगारपरक शिक्षा की जरूरत है। इसके लिए हमें कहीं और देखने की जरूरत नहीं है। केशवधाम स्थित रामकलीदेवी सरस्वती बालिका विद्या मंदिर का लोकार्पण करते हुए संघ प्रमुख ने कहा शिक्षा जीवन का अविभाज्य अंग है। शिक्षा रोजगारपरक होनी चाहिए। जिसे पूरा होने के बाद आत्मविश्वास मिले। शिक्षित व्यक्ति खुद और परिवार को चलाते हुए समाज के प्रति अपने दायित्व पूरा कर सके। स्वजन के प्रति संवेदनशील हृदय शिक्षा से बनना चाहिए। ये होगा तो आत्मनिर्भर भारत सिद्ध होता है। उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भर भारत में भारत की आत्मा का शब्द पहला है। विद्या भारती के साथ चलने वाले विद्यालयों की ये कीर्ति है कि उसमें सारा कुछ मिलता है।
मोहन भागवत ने कहा, रोजगार परक शिक्षा प्राप्त करने के लिए विश्व में अन्यत्र देखने की जरूरत नहीं है। इंग्लैंड में शिक्षा कहां से गई? हमारी जो शिक्षा पद्धति देश के लोगों को रोजगार देती थी, उसे अंग्रेज इंग्लैंड लेकर गए। उस समय इंग्लैंड में 17 फीसद साक्षरता थी, जो अब 70 फीसद हो गई। वहां 17 फीसद साक्षरता लाने वाली शिक्षा पद्धति हम पर लादी गई। मनुष्य के जीवन की सर्वांगीण शिक्षा कैसी होनी चाहिए, ये हमारे लिए समस्या नहीं है, हमारे पास उसका तंत्र है। हमें अपनी आत्मा की ओर झांकने की जरूरत है। देश-विदेश जो अच्छा मिलेगा उसे हम जरूर लेंगे, लेकिन उनकी बातों का अनुकरण करना और तंत्र की कापी करने की जरूरत नहीं है। अब देश में नई शिक्षा नीति आई है, अभी लागू नहीं हुई है। लेकिन इस विद्यालय में नई शिक्षा नीति लागू होगी।
संघ प्रमुख ने कहा कि शिक्षा की शुरुआत माता की देखरेख में होती है। माता के दिए संस्कार जीवन भर काम करते हैं। इसलिए एक माता शिक्षित होती है, तो उसकी संतानें अपने आप शिक्षित होती हैं। इसलिए बालिका विद्यालय का महत्व अधिक है। देश में महिला वर्ग को शिक्षा की बहुत आवश्यकता है। भारत की महिलाएं जब सशक्त बनेंगी, तो वह अपने देश का पुरुषों सहित उद्धार तो करेगी ही, जगत में सुख-शांति का वरदान लाएंगी। महिलाओं को हमने परंपरा की कुछ बातों में जकड़ रखा है, उससे उसे मुक्त करना और शिक्षित करना हमारा दायित्व है।