कोरोना की दवाई कुछ हफ्तों में आने के प्रति माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के बाद अब आशा बंध रही है कि इससे छुटकारा जब मिलेगा तब मिलेगा फिलहाल इलाज चलता रहेगा। जिम्मेदारों का कहना है कि एक करोड़ स्वास्थ्यकर्मियों को पहले टीका लगाया जाएगा। मेरा मानना है कि किसी को भी लगे लगना चाहिए। एक बात के लिए सरकार की प्रशंसा की जानी चाहिए कि भारत ने बेहतर ढंग से यह लड़ाई लड़ी और अब वैज्ञानिकों की मंजूरी मिलते ही इसके परिणााम सामने आएंगे तथा सर्वदलीय बैठकर बुलाकर प्रधानमंत्री ने यह शिकायत भी दूर कर दी कि औरों को विश्वास में नहीं लिया जा रहा है। लेकिन बेहतर इलाज और स्वयं को स्वस्थ रखने के लिए इतने कोरोना का टीका प्रचलन में आए हमें सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क लगाने के नियम का पालन करने और कराने के लिए पूर्ण रूप से तैयार रहना है। माननीय न्यायालय द्वारा भी इस संदर्भ में समय समय पर निर्देश दिए जा रहे हैं और जन प्रतिनिधि भी जब तक दवाई नहीं तब तक ढिलाई नहीं आदि नारों और संबोधनों के माध्यम से हमें मास्क लगाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं और प्रशासन व पुलिस भी अपने तरीके से हमें सोचने और कुछ करने के लिए मजबूर करने में लगी है तो सामाजिक संगठन और जागरूक नागरिक अपनी गांठ का पैसा खर्च कर मास्क बांटने में दरियादिली दिखा रहे हैं फिर सवाल यह उठता है कि आखिर बीमारी नियंत्रण में क्यों नहीं आ रही और अपने हित में लोग मास्क क्यों नहीं लगा रहे तो मुझेलगता है कि ग्रामीण कहावत भय बिन प्रीत ना होय गोपाला को ध्यान में रखते हुए कुछ सख्त कदम उठाने ही होंगे। अब सवाल उठता है कि जब पुलिस चालान और जुर्माने भी कर रही है। फूल और गुलदस्ते भी भेंट कर रही है फिर भी समस्या का समाधान होने की बजाय सुरसा के मुंह की भाति बढ़ता ही जा रहा है।
इस संदर्भ में जब थोड़ा सोच विचार किया गया तो जो बात समझ में आई वो यह है कि कोरोना रोकने के लिए बनाए गए कानूनों को लागू करवाने के लिए इससे संबंध अधिकारी समस्या की जड़ तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। और जिन्हें इन्हें अवगत कराना चाहिए कारण कुछ भी हो शायद वो अपनी जिम्मेदारी का पालन नहीं कर पा रहे हें।
मेरा मानना है कि अगर सरकारी अफसर मास्क लगाने या सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराना चाहते हैं तो उन्हें गली मौहल्लों में रहने वाले जागरूरक नागरिकों और पत्रकारों के साथ अलग अलग गोष्ठी जो पत्रकार सम्मेलन के रूप में या समाज कीी परेशानियां और सरकार की नीतियों का लाभ कितना पात्र व्यक्तियों को मिल रहा है यह जानने हेतु कार्यक्रम आयोजित करते थे वो पुन डीएम और एसएसपी तथा सीएमओ को एक साथ पत्रकारों के साथ बैठकर चर्चा करनी चाहिए क्योंकि जब तक असली बिुदु का ज्ञान इन्हें नहीं होगा तब तक कितने ही जुर्माने और चालान कर लिए जाएं और कितनी ही दवाई बांट ली जाए कोई विशेष फर्क पड़ने वाला नहीं है।
– रवि कुमार विश्नोई
सम्पादक – दैनिक केसर खुशबू टाईम्स
अध्यक्ष – ऑल इंडिया न्यूज पेपर्स एसोसिएशन
आईना, सोशल मीडिया एसोसिएशन (एसएमए)
MD – www.tazzakhabar.com