मुख्यमंत्री जी और मंडलायुक्त दें ध्यान, एमडीए के अफसर; पार्कों के रखरखाव, अवैध निर्माण रोकने व योजनाएं पूरी करने में क्यों रहे असफल

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क्या दिव्यांग पार्क में मनोरंजन का सपना पूरा हो पाएगा

अपने शहर में दिव्यांगजनों के लिए विशेष सुविधाओं से युक्त एक पार्क मेरठ विकास प्राधिकरण द्वारा उज्जैन की तर्ज पर विकसित किए जाने की चर्चा है। कहा जा रहा है कि इसके लिए एमडीए बोर्ड की अध्यक्ष कमिश्नर अनीता सी मेश्राम की भी सहमति प्राप्त हो चुकी है।

बताते हैं कि शहर में जल्द ही एक ऐसा पार्क बनने वाला है जो खासतौर से दिव्यांगों के लिए होगा। उनकी सुविधाआंे और जरूरतों को ध्यान में रखकर पार्क बनेगा। इसमें सामान्य लोग सीमित संख्या में जा सकेंगे, लेकिन ऐसे लोगों पर कड़ी निगरानी होगी ताकि दिव्यांगों को परेशानी न हो। सबसे बड़ी बात यह होगी दिव्यांग यहां संगीत के साथ पक्षियों की चहचहाहट भी सुनेंगे। ऐसा पार्क मध्य प्रदेश के उज्जैन में बनाया गया है। उसी तर्ज पर शहर में भी पार्क बनाने के लिए मंगल पांडेय नगर में निगम के पार्क का चयन किया गया है। उज्जैन का पार्क कैसा है और उसे कैसे विकसित किया गया। इसे देखने के लिए चार दिन पूर्व एमडीए की टीम भेजी गई थी। टीम ने संबंधित निकाय से पूरा विवरण लिया है। वीसी से चर्चा करने के बाद उसे यहां मूर्त रूप देने के लिए प्रस्ताव तैयार करना शुरू कर दिया गया है। नियोजन व अभियंत्रण अनुभाग इसका स्टीमेट व डीपीआर आदि तैयार करेगा। गौरतलब है कि मंडलायुक्त अनीता सी मेश्राम ने यह पहल की है। इस तरह का पार्क बनाने के लिए बोर्ड बैठक में निर्णय हो गया है। ढाई हेक्टेयर में एक करोड़ से बने उज्जैन स्थित दिव्यांग पार्क का उद्घाटन पिछले साल हुआ था। पार्क के लिए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने भी आर्थिक सहयोग किया। इसकी एक खास बात यह भी है कि इसे विकसित करने के दौरान एक भी पुराना पेड़ नहीं काटा गया।
पार्क की ये होंगी खासियत
पार्क सभी तरह के दिव्यांगों के लिए सुविधाजनक होगा।
आंख से दिव्यांग व्यक्ति के लिए फुटपाथ पर ऐसी टाइल्स होगी जिससे वे पैर से समझ सकेंगे कि किधर मुड़ना है किधर नहीं। यहां उन्हंे किसी अन्य व्यक्ति की जरूरत नहीं पड़ेगी।
घूमने-फिरने और मनोरंजन के सभी संसाधन रहेंगे।
पार्क में लगातार संगीत की धुनें और पक्षियों की आवाजें गूंजेंगी। जिससे वे प्रकृति के ज्यादा करीब महसूस कर सकें।
पैर से दिव्यांगों की सुविधा के लिए कम ऊंचाई के वाकिंग ट्रैक होंगे।
विभिन्न तरह की दिव्यांगता को देखते हुए अलग-अलग तरह की कुर्सियां और बंेच हांेगी।
किसी भी शहर के नागरिकों के लिए यह खुशी की खबर हो सकती है और खासकर अपने दिव्यांग भाईयों के लिए विशेष व्यवस्था हो यह और भी अच्छी बात है। मगर सवाल यह उठता है कि जिस प्राधिकरण के अधिकारियों को यह जिम्मेदारी दी गई है क्या वो इसे पूरा करने में सफल हो पाएंगे। तो मुझे कई नागरिकों की यह राय सही सी प्रतीत होती है कि ऐसा संभव नहीं लगता है।

माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी और मेरठ मंडलायुक्त अनीता सी मेश्राम जी ध्यान दें कि जितने पार्क मेरठ विकास प्राधिकरण द्वारा विकसित कालोनियों में हैं उनकी क्या स्थिति है, पार्कों पर कितना खर्च हर माह उनके रखरखाव व देखभाल के लिए अधिकारियों व कर्मचारियों की तनख्वाह देने अथवा उनमें पेड़ पौधे लगाने या सौंदर्यीकरण पर आ रहा है। मगर असलियत में वो हैं किस हाल में । जहां तक एमडीए द्वारा विकसित काॅलोनियों में रहने वाले नागरिकों का कहना है तो उसके अनुसार तो जहां वीसी साहब का निवास है वहां का पार्क तो फिर भी सही कहा जा सकता है लेकिन बाकी पार्कों में शायद इनको बनाते समय सौंदर्यीकरण और हरियाली आदि के लिए बनाई गई योजना के अनुसार एक भी पार्क शायद मापदंडों पर खरा नहीं उतरता है लेकिन खर्च इन पर हर साल बढ़ता ही जा रहा है। आयुक्त महोदया एक बार आकस्मिक रूप से इन पार्कों का खुद या अपर आयुक्तों के माध्यम से निरीक्षण कराएं जिससे इनकी खस्ता हालत दुरूस्त हो सके। क्योंकि मेरी निगाह में अन्य पार्काें की स्थिति क्या होगी उसका अंदाज कमिश्नरी के सामने स्थित चैधरी चरण सिंह पार्क की व्यवस्था को देखकर लगाया जा सकता है।
दूसरी ओर एमडीए के अधिकारी अपनी प्रथम जिम्मेदारी शहर के सुनियोजित विकास को दृष्टिगत रखकर अवैध निर्माण रोकने में भी पूरी तौर पर दावे इनके द्वारा कितने ही कर लिए जाएं असफल ही सिद्ध हो रहे हैं। वो बात दूसरी है कि एक तो अवैध काॅलोनियों में थोड़ा सा बुल्डोजर चलाकर और कुछ निर्माणों मेें सील लगाकर कार्रवाई का ढिंढोरा पीटा जाए मगर असलियत यह है कि एमडीए के अधिकारियेां की जानकारी के बावजूद जारी है और कितने ही सील लगे निर्माणों में मौके पर शोरूम चल रहे हैं। और अफसर कानों में तेल डाले और आंखें मूंदे बैठे हैं।

मंडलायुक्त जी मैं यह तो नहीं कहता कि प्राधिकरण में कुछ काम नहीं हो रहा लेकिन शहरवासियों की इस बात से पूरी तौर पर सहमत हूं कि इस विभाग के मुखिया और उनके सहयोगी पूरे पिछले वर्ष शासन की निर्माण नीति और विभाग की योजनाओं तथा बोर्ड बैठक में लिए गए निर्णयों के अनुसार शायद 90 प्रतिशत कार्यों को भी पूर्ण कराने में शायद असफल ही सिद्ध हुए हैं।
जहां तक सुनाई दिया घोटालों की जांच की चर्चा तो काफी चली लेकिन उसके परिणाम क्या हुए इसके बारे में शायद किसी को भी पता नहीं है क्योंकि कुछ सूत्रों का यह भी कहना है कि उच्चाधिकारियों का ध्यान बंटाने के लिए जांचे तो शुरू होती है लेकिन बाद में ठंडे बस्ते में चली जाती है। सही स्थिति क्या है यह तो वीसी साहब या अन्य अधिकारी जान सकते हैं। मगर जो दिखाई दे रहा है उससे यही लगता है कि ऐसे मामलों में मजबूती से कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।

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