मीडिया हो या आम आदमी किसी के बारे में भी अपशब्द लिखने या कहने से पहले?
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में आयोजित सत्र ‘चैथा स्तंभ’ द फोर्थ एस्टेट’ में बोलने की आजादी को लेकर खूब चर्चा हुई। किसने क्या कहा इस विवाद में तो मैं नहीं पड़ना चाहता लेकिन यह बात विश्वास के साथ कही जा सकती है कि बीते दिनों छपी एक रिपोर्ट की देश में लोकतंत्र दसवें पायदान से खिसककर 51वें पायदान पर पहुंच गया के बावजूद बोलने की आजादी में कोई कमी आई हो या मीडिया कुछ कम लिख बोल रहा हो ऐसा नहीं लगता है। आज की तारीख में जब हम अपने समकक्ष किसी व्यक्ति को कुछ कहने से पहले तीन बार सोचते हैं लेकिन प्रमुख पदों पर बैठे व्यक्तियों और महापुरूषों के बारे में कुछ भी बोलते समय यह नहीं सोचते की हमारा कथन उनकी गरिमा के अनुकूल है या नहीं तो इसे मीडिया और आम आदमी के बोलने की देश में आजादी ही कही जा सकती है। हम पीएम की तो छोड़िए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की बारे में भी टिप्पणी करने से नहीं चूकते हैं। अब इससे ज्यादा आजादी तो कहीं भी नहीं हो सकती है।
इसलिए यह झूठ है कि वर्तमान दौर में आम जनता या मीडिया की आजादी छीनी जा रही है। आज कोई भी मुंह उठाकर सीधे प्रधानमंत्री को अपशब्द कह देता है और इसे अभिव्यक्ति की आजादी बताने लगता है। यह आजादी नहीं है तो फिर क्या है! सच तो यह है कि मीडिया हो चाहे आम जनता, जितनी आजादी इस दौर में सबको मिली हुई है, उतनी पहले शायद कभी नहीं मिली। जिन्हें यह आजादी महसूस नहीं होती, वो आपातकाल का दौर याद कर लें, जब प्रेस, विपक्षी नेता, कलाकार से लेकर जनता तक को कुछ भी कह सकने की स्वतंत्रता नहीं थी। बोलते ही जेल में डाल दिया जाता था, इसलिए सबको इस आजादी का सम्मान करना सीखना होगा।
यह बात गत दिवस जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में आयोजित सत्र चैथा स्तंभः द फोर्थ एस्टेट’ में कही गई। सत्र में वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी, दैनिक जागरण के एसोसिएट एडिटर अनंत विजय, पांचजन्य के संपादक हितेश शंकर और अतुल चैरसिया ने माॅडरेटर अनु सिंह चैधरी से बातचीत की।
एक समाचार पत्र में छपी खबर के अनुसार सत्र में मीडिया के दक्षिण और वामपंथ के खेमे में बंट जाने पर गरमागरम बहस हुई। थानवी ने कहा- ‘आज का मीडिया गोदी मीडिया हो गया है।’ प्रत्युत्तर में हितेश शंकर और अनंत विजय ने इसका जोरदार खंडन करते हुए कहा कि मोदी को अपशब्द कह देने से मीडिया की दुकान चलती है। इसलिए कुछ खास एजेंडे वाला मीडिया दिनभर मोदी को कोसता रहता है। सच तो यह है कि इसके बिना उनका काम ही नहीं चल पाता। सत्र में थानवी ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि 2014 के बाद से चैनल रिपब्लिक के अलावा किसी नए चैनल को लाइसेंस नहीं दिया गया। यह मीडिया का गला घोंटने जैसा है। इस पर हितेश शंकर ने तर्क के जरिये साबित किया कि थानवी झूठ बोल रहे हैं। शंकर ने कहा कि मोदी सरकार के दौरान चार नए न्यूज चैैनल, 16 मनोरंजन चैनल के लाइसेंस भी दिए गए हैं।
सोशल मीडिया सच सामने ला रहा
सोशल मीडिया व मुख्य धारा के मीडिया को लेकर चर्चा में कहा गया कि सोशल मीडिया अराजक हो गया है, क्योंकि इस पर गलत जानकारियां और अफवाहें चल रही हैं। इसके जवाब में अनंत विजय और हितेश शंकर ने तर्क देते हुए प्रतिकार किया कि कल तक मीडिया की ताकत कुछ चंद लोगों के हाथ में थी, किंतु आज हर हाथ में मोबाइल है और हर व्यक्ति रिपोर्टर या संपादक है। पहले मीडिया खास विचारधारा के समर्थन में एजेंडा चलाता था, लेकिन अब संभव नहीं, क्योंकि सोशल मीडिया ने हर व्यक्ति को सच बताना शुरू कर दिया है। इसलिए बरसों से मीडिया में पांव जमाकर अपना एजेंडा चला रहे लोगों के पांव उखड़ रहे हैं, इसलिए वही सोशल मीडिया को अराजक बता रहे हैं। यह इशारा वामपंथ का एजेंडा चलाने वाले मीडिया की ओर था।
मेरा मानना है कि आजादी या स्वतंत्रता का मतलब दूसरों को बेइज्जत करना नहीं है। इसलिए चाहे मीडिया हो या आम नागरिक, नेता हो या कार्यकर्ता सबको बोलते समय अपनी सीमाओं और सामने वालों की गरिमा का ध्यान जरूर रखना चाहिए। क्योंकि अपशब्द बोलने से थोड़ी चर्चा तो जरूर मिल सकती है लेकिन समाज पर उसका अच्छा असर नहीं पड़ता है। और मीडिया क्योंकि समाज से बुराईयां दूर करने और अच्छा संदेश देने के लिए पहचाना जाता है। इसलिए सबको अपनी अपनी जिम्मेदारियों को सही बात कहने में बिना डरे पूरा करने के लिए अब तैयार होना पड़ेगा।