देश के शहरों कस्बो के गली मोहल्लों में खुली डेरियां वर्तमान समय में हर नागरिक के लिये तो मुसीबत का सबब बनी हुई हैं तो साफ सफाई को प्रभावित कर वायु व जल प्रदूषण फैला रही हैं। इससे जनता को उत्पन्न समस्याओं को ध्यान में रखते हुए कुछ सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा स्थानीय प्रशासन पुलिस व नगर निगमों एवं नगर पालिकाओं की इस ओर से अपनाई गई उदासीनता के चलते माननीय न्यायालय का द्वार खटखटाया गया। परिणाम स्वरूप कितने ही मामलों में इन डेरियों को हटाने और अन्य स्थान पर भेजने के निर्देश अदालतों के साथ साथ शासन और सरकार के स्तर पर भी हुए। मगर परिणाम वो ही ढांक के तीन पात नजर आ रही हैं। जिन लोगों के निस्वार्थाें के चलते यह डेरियां खुली और चल रही है उनके द्वारा सीधे सीधे या घूमा फिराकर फिलहाल हर स्तर से जारी व निर्देशों को या तो नजर अंदाज किया जा रहा है अथवा कागजी कार्रवाई के चक्र व्यूह में फंसाया जा रहा है। इसलिये वर्तमान समय में जितनी डेयरी पहले जहां थी वो आज भी खुले या ढंके रूप में चल रही है।
मेरठ के कमिश्नर डा. प्रभात कुमार जैसे कुछ ईमानदार और अपने कार्य के प्रति निष्ठावान तथा शासन के आदेशों को लागू करने के लिये हमेशा प्रयासरत रहने वाले वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा इस संदर्भ में कुछ प्रभावशाली निर्णय लिये जा रहे हैं जिनमे से एक डेयरी संचालकों पर जुर्माना लगाना भी है।
इन डेयरियों पर पलने वाले पशुओं के गोबर से युक्त कीचड़ व कूड़े के नालो व नालियों में जाने तथा सड़कों पर फैलने से कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो किसी न किसी रूप से प्रभावित न होता हों। साथ ही इस जन समस्या को भुनाने और अपनी नेता गिरी चलाने के लिये कुछ लोगों द्वारा आये दिन संबंधित अफसरों को ज्ञापन देने और फोटो खिचवाने का काम भी किया जा रहा हैं। शायद यह भी एक कारण है कि आज तक हर स्तर पर इनके खिलाफ कार्रवाई के आदेश व निर्देश होने के बाद भी 100 में 90 प्रतिशत डेरियां बादस्तूर पुरानी जगहों पर ही चल रही हैं।
इतना ही नहीं कुछ डेयरी संचालकों द्वारा तो गली मोहल्लों में नागरिकों के यहां होने वाले धार्मिक आयोजनों हेतु छोड़ी गई भूमि पर कब्जा कर वहां लेंटर डालकर डेरियां चलाई जा रही है और जब इनके खिलाफ कार्रवाई की बात होती है तो छुट भैया नेताओं से लेकर बड़े जनप्रतिनिधि जिनमे कहीं कहीं सांसद और विधायक भी शामिल होते है। इनके पक्ष में कार्रवाई करने से संबंध अधिकारियों के यहां पहुंचकर डेयरी हटाने के लिये चलाए जाने वाले अभियान की हवा निकाल देते हैं जिस कारण यह अभियान हवाई दावों तक ही सिमट कर रह जाते हैं।
संबंधित अधिकारी भी डेयरी हटाने की बात करते हैं लंेकिन जो सरकारी भूमि इनके द्वारा घेरी गई है उसे खाली कराने या बाजार रेट पर उसका पैसा वसूलने की ओर इनके द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया जाता। परिणाम स्वरूप ग्रामीण कहावत ज्यो ज्यो दवा की रोग बढ़ता गया। के समान शहरों में चारो ओर फैली डेयरियां कोढ़ोे में खाज की तरह घूल मिल रही हैं।कुल मिलाकर यह तो डेरियों सेे संबंध एक पक्ष हुआ। लेकिन अगर व्यवस्था और मानवीयता के दृष्टिकोण से देखे तो अभी तक कहीं भी इन डेरियों को हटाने का सही प्रयास शासन और माननीय न्यायालय आदि के आदेशों के बावजूद कहीं भी होता नहीं दिखाई दे रहा हैै। यही कारण इन डेरियों के न हट पाने का मुझे विशेष रूप से लगता है।
मेरा मानना है कि समाज में दूध, घी, मक्खन और इनसे बनी खाद्य सामग्री की बढ़ती मांग से मुनाफे का हुआ यह काम आसानी से शहरों से हटने वाला नहीं। अगर वाकई हम सब चाहते हैं कि गली मोहल्लों से डेरियां हटें तो हमारी सरकार और शासन तथा विकास प्राधिकरणों एवं नगर निगमों और प्रशासनिक-पुलिस अधिकारियों को जनप्रतिनिधियों से मिलकर विचार विमर्श करके इन डेरियों को शहर की सीमा से बाहर किसी ऐसी जगह पर बसाने की व्यवस्था करनी होगी जहां अगले लगभग 50 साल तक घनी आबादी बढ़ने की संभावना न हों और पानी की निकासी, इन डेरियों से निकलने वाली गंदगी को उठाकर निर्धारित स्थान पर डलवाने की व्यवस्था पूर्ण रूप से करनी होगी।
मुझे लगता है कि अगर महानगर की सीमाओं से बाहर कहीं डेयरी नगर बसा दिया जाए और वहां सर्किल रेट के हिसाब से इन डेयरी संचालकों को जगह दे दी जाए तो इस समस्या का समाधान हो सकता है क्योंकि ज्यादातर तो अपने आप ही जगह खरीदकर अपना व्यवसाय वहां ले जाएंगे। और जो कुछ आनाकानी करें तो वो कानून की सख्ती के डंडे के चलते मजबूरी में वहां चले जाएंगे। ऐसे में छुट भैया जो इस काम में लगे हैं उनके सामने भी कोई चारा नहीं बचेगा। और डेयरी नगर भी बस जाएगा तथा शहर की गंदगी भी जो इनसे फैलती है वो समाप्त हो जाएगी और नागरिकों को दूध दही मक्खन आदि आसानी से प्राप्त मात्रा में मिलता रहेगा। क्योंकि आज भी जिलों के आसपास ग्रामों में रहकर गाय भैंस पालने वाले अपना दूध बेचने 20-20 किलो मीटर दूर तक से महानगरों में आते हैं इसलिये डेयरी नगर अगर बसता है तो वहां से महानगरों तक दूध पहुंचने में कोई कठनाई किसी के सामने नहीं होगी। और इस समस्या का समाधान भी निकलकर सामने आ जाएगा।
हो सकता है कि मेरी सोच में कहीं कुछ कमी हो लेकिन जब इस व्यवस्था को बनाने के लिये सब मिलकर बैंठेंगे तो जो कमियां है वो दूर हो जाएगी। और सबसे बडी बात है की शासन और प्रशासन ने ईमानदारी से इन्हे यहां से हटाने का प्रयास किया तो मेरा दावा है कि इन डेयरी
संचालकों द्वारा जो अरबो रूपये की सरकारी संपत्ति जो मोहल्लों में फैली पडी है वो खाली हो जाएगी और उससे हर शहर और देहात व महानगर में इतना पैसा सरकारी खजाने में आ सकता है जिससे विकास कार्याें में तो तेजी आएगी जल्द और वायु प्रदूषण जो इनसे फैल रहा है उससे सबको छुटकारा मिल सकता है।
इसलिये जुर्माने और हटाने के प्रयास के अलावा डेयरी नगर बसाने का काम सर्व प्रथम किया जाए क्योंकि आखिर हैं तो यह भी हमारे भाई। जब तक उनकी रोजी रोटी चलते रहने का विश्वास उन्हे पूरी तौर पर नहीं होगा तब तक मेरी निगाह में कितनी भी सख्ती कर लें डेयरी की समस्या का समाधान बिना नजर बचाए होने वाला नही हैं।
– रवि कुमार विश्नोई
राष्ट्रीय अध्यक्ष – आॅल इंडिया न्यूज पेपर्स एसोसिएशन आईना
सम्पादक – दैनिक केसर खुशबू टाईम्स
MD – www.tazzakhabar.com